गिरिपार क्षेत्र मे बूढ़ी दीवाली की तैयारियां शुरु ddnewsportal.com

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गिरिपार क्षेत्र मे बूढ़ी दीवाली की तैयारियां शुरु

पर्व को धूमधाम से मनाने की तैयारियों मे जुटा हाटी समुदाय, 14 दिसम्बर से होगा आयोजन

पारम्परिक संस्कृति के धनी जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय के लोग बुढ़ी दिवाली की तैयारियों मे जुट गये है। नई दिवाली के ठीक एक माह बाद गिरिपार क्षेत्र मे मनाये जाने वाले इस अहम पर्व की तैयारियां शुरु हो चुकी है। गृहणियां इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा व शाकुली बनाने मे जुट गई है। जानकारी के मुताबिक शहरी क्षेत्र में 14 नवम्बर को दीपावली का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। परंतु गिरिपार के हाटी समुदाय के लोग अब 14 दिसम्बर को बूढ़ी दीवाली मनाने की तैयारी में जुट गए है। बूढ़ी दीवाली का यह त्यौहार सिरमौर जिले के गिरिपार के घणद्वार, मस्त भौज, जेल-भौज, आंज-भौज, कमरऊ, शिलाई, रोनहाट व संगड़ाह क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौंसार बाबर में भी मनाया जाता है। बूढ़ी दीवाली के इस त्यौहार को परंपरागत तरीके से मनाने के लिए क्षेत्र के ग्रामीण कई दिन पहले से ही तैयारी में जुट जाते है। इन दिनों ग्रामीण अपने घरों लिपाई-पुताई कर रहे है। बूढ़ी दीवाली का पांरपरिक मुड़ा है जो कि गेंहू को उबालकर सूखाने के बाद कड़ाही में भूनकर तैयार किया जाता है। इस मूड़े के साथ अखरोट की गीरी, खील, बताशे व मुरमुरे आदि मिलाए जाते है। बूढ़ी दीवाली के दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशालें जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटो तक टीले व धार पर लोकनृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। एक दूसरे से मिलकर दीवाली की बधाई दी जाती है। बूढ़ी दीवाली के संबध में क्षेत्र के

बुर्जुग बताते है कि दीपावली के समय किसानो को अपनी फसल व पशुओं का चारा एकत्रित करना होता है। इसलिए एक महीने तक सारा काम निपटाने के बाद आराम से बूढ़ी दीवाली आनंद उठाते है। हांलाकि अब कुछ क्षेत्र में लोग शहरी संस्कृति के चलते दीवाली ही मनाते है। लेकिन ज्यादातर क्षेत्र अब भी बुढ़ी दीवाली ही मनाता है। बहरहाल, गिरिपार क्षेत्र बुढ़ी दीवाली की तैयारियों मे जुट गया है।