शहीद ऊधम सिंह जयंती विशेष: आज की पीढ़ी को जानना चाहिए कौन थे शेर सिंह... ddnewsportal.com

शहीद ऊधम सिंह जयंती विशेष: आज की पीढ़ी को जानना चाहिए कौन थे शेर सिंह... ddnewsportal.com

शहीद ऊधम सिंह जयंती विशेष: आज की पीढ़ी को जानना चाहिए कौन थे शेर सिंह...

वीर शहीदों के बलिदान से ही सामान्य जन मानस की राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के आंदोलन में सम्पूर्ण भागीदारीता की चेतना से मजबूत लहर बनी, जिससे 15 अगस्त 1947 में देश के नागरिकों ने आजादी की सांस ली व भारत एक आज़ाद राष्ट्र बना और एक लोकतांत्रिक सरकार की  सुनिश्चित स्थापना अब तक कायम है।
इन्ही महान वीर शहीदों में शहीद-ए-आजम शहीद उद्धम सिंह कंबोज (शेर सिंह) जी का नाम भी सर्वोपरि है, जिनका जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब प्रांत के सुनाम निवासी काम्बोज परिवार में हुआ था। महज 7 वर्ष की उम्र में ही उनके सर से  माता और पिता का साथ छूट गया, उनके पूरे परिवार को चेेचक की बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया था, इनकी अग्ली परवरिश अमृतसर के एक अनाथालय  में हुई। उद्धम सिंह का बचपन बहुत कठिन परिस्थितयों में गुजरा, परन्तु महान पवित्र गुरुग्रंथ शाहिब की वाणी और महान शहीद गुरु बलिदानों के आदर्श उनके अन्तःमस्तिष्क में गहरी जगह बना चुके थे। इस से उनका पावन चरित्र कायम रहा। 
वह अनेक कलाओं (मैकेनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, सिविल इंजीनियर, पलम्बर, बारबर, ड्राइविंग, कुकिंग, बहुभाषाविद्, वेशभुषाविद्, कानून के ज्ञाता, कुुशल अभिनेता, कुशल लेखक, शिल्पकार, योजनाकार और  कुशल प्रबंधक इत्यादि) में प्रांगण होने के साथ-साथ वह सच्चरित्र, सहनशील, स्वस्थचित्त, समतामूलक, सुक्ष्मदर्शी, शाहसी, बलिदानी, दूरदर्शी, जिज्ञासु, मूल्य सम्पन्न, धर्म निरपेक्ष, मानवतावादी, कर्त्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा जैसे गुणों से संपन्न होकर, महिलाओं, मातृत्व के सम्मान के रक्षक, मानवीय अधिकारों के संरक्षक, अनाथों के प्रति समानुभूति, प्रबल चरित्र के धनी, देश की एकता और अखंडता के प्रतीक (मोहम्मद सिंह आजाद), विविधता में एकता के आदर्श, शोषितों व वंचितों की आवाज, वह अपने देश को ब्रिटिश अत्याचार और शोषण से मुक्त कराने के लिए आजीवन मन्सा-वाचा-कर्मणा समर्पित रहे और अपने जीवन को देेश की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया।


1919 जलियांवाला बाग की सबसे दुखदाई घटना जिसमें देश के सारे धर्मों के लोगों को अंग्रेज हुकमरानों ने गोली से भून दिया था, यह मौत का तांडव ऊधम सिंह ने अपनी आंखो से देखते हुए अपने दिमाग में तस्वीर बना ली, और उसी वक्त इसी खून से भीगी मिट्टी को अपने हाथ में उठा कर ब्रिटिश शासन का अन्त करने की कसम ली थी। कठिन हालातों में काफ़ी मुश्किलों के बाद लंदन पहुंच कर 21 वर्षों बाद  उद्धम सिंह द्वारा शोषण कारी ब्रिटिश के घर में घुसकर (जलियांवाला बाग-1919 में हुए कत्लेआम) जर्नल माइकल ऑडायर को भरी सभा में सामने से गोली मारना, यह एक शेर (शेेरसिंह बचपन का नाम) की बड़ी दहाड़ थी, जिसकी गूँज दूसरे विश्वयुद्ध के दोरान संपूर्ण विश्व में सुनाई दी और अखबारों में पहले पन्नों में छपी। जिसने, कभी न अस्त होने वाले सूर्य (ब्रिटिश साम्राज्य) को उनके घर मे ही डूबों दिया गया। यह घटनाक्रम न केवल कामागाटामारू प्रकरण, जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला मात्र था अपितु गरीब, वंचित, बेदखल किसानों के शोषण और ब्रिटिश अत्याचारों का प्रतिफल भी था, जो सदियों से निरंतर चलायमान था। यह उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद की नीव पर एसा प्रहार था जिसने ब्रिटिश के खोखलेपन को सार्वजनिक कर स्वतन्त्रता की लौ को पूूर विश्व में तीव्र किया। इसके ठोस परिणामस्वरूप सात वर्षो बाद ही अंग्रेज भारत छोड़ने  के लिए मजबूर हुए। 1974 में उनकी शहादत के 34 वर्षों बाद शहीद ऊधम सिंह के पार्थिव शरीर को भारत लाया गया और दिल्ली एयरपोर्ट पर पूरे सम्मान के साथ कपूर्थला हाऊस में लोगो के अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया। तात्कालिक प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अंतिम श्रद्धांजलि देते हुए शरधावान जलूस के साथ पार्थिव शरीर को हरियाणा, चंडीगढ़ और पंजाब के रास्ते उनकी जन्म भूमि सुनाम में पहुंचाया गया। देश और सुनाम के लोगों ने अंतिम श्रद्धांजलि देकर खेल स्टेडियम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। गहन छानबीन के पश्चात उनके अस्थिकलश  पूर्व  राष्ट्रपति  ज्ञानी जैल सिंह (उस समय के मौजूद मुख्यमंत्री) पंजाब सरकार द्वारा शहीद ऊधम सिंह की जीवित चचेरी बहन आशकौर  को सौंपी गई और बहन आश कौर की सरकारी पेंशन लगा कर सम्मान दिया गया। इसके बाद सुनाम का नाम बदल कर सुनाम ऊधम सिंह वाला रखा गया, जो कि शहीद ऊधम सिंह जी को समर्पित श्रद्धांजलि दी। इसी लगातारता में शहीद उद्यम सिंह कम्बोज इन्टरनेशनल महासभा सुनाम, पंजाब (रजिस्ट्रड) इस महान शिरोमणि वीर शहीद को कोटि कोटि नमन करती हुई उनकी वंदना करती है।
    
"दिल से निकलेंगी न मरकर भी वतन की उलफत तेरी मिट्टी से भी खुशबू ए वतन आयेगी।"

Hardyal Singh kamboj,
(Family' member Shaheed Udham singh ji , Sunam Udham Singh Wala & President Shaheed Udham Singh kamboj International Maha-sabha-Regd).