चुनावी हलचल- चौतरफा घिर रहे ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी ddnewsportal.com
चुनावी हलचल- चौतरफा घिर रहे ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी
कांग्रेस के निशाने पर तो है ही, साथ ही अपनों की भी झेलनी पड़ रही नाराजगी, विस चुनाव नजदीक आते ही खड़े होने लगे हैं दावेदार... पढ़ें ये विश्लेषण
दिनेश कुमार पुंडीर- पांवटा साहिब
कहते हैं कि, राजनिती का पहला सबक होता है कि अपने बाप पर भी भरोसा नही करना चाहिए, फिर दूसरे तो मौका लगते ही पटखनी देने में कोई कसर बाकी नही छोड़ते। ऐसा कुछ आजकल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और पांवटा साहिब के विधायक सुखराम चौधरी के साथ देखने को मिल रहा है। यहां पर वह कांग्रेस के निशाने पर तो है ही, जो कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि विपक्ष तो विरोध करेगा ही। लेकिन ऊर्जा मंत्री की मुश्किलें तो इसलिए भी आने वाले समय में ज्यादा बढ़ सकती है क्योंकि उन्हे अपने ही घेरने मे लग गये हैं। विधानसभा चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है ऊर्जा मंत्री अपने ही घर में अपनों से ही चौतरफा घिरने लगे हैं। गत दिनों भाजपा के एक पूर्व पदाधिकारी मनीष तोमर ने पत्रकार वार्ता कर भाजपा से टिकट की दावेदारी पेश कर दी तो राजनैतिक हलचल और तेज हो गई। उनका कहना है कि गिरिपार क्षेत्र की डेढ़ दर्जन पंचायतों को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। हालांकि रात तक ही मंडल की तरफ से उन्हे नोटिस जारी कर एक सप्ताह में स्पष्टीकरण देने को कहा गया, जिसका जवाब आना अभी बाकी है। बात यहीं थमती तो कुछ राहत मिलती। लेकिन अगले ही दिन सुखराम चौधरी की ही बिरादरी से एक नेता रोशन लाल शास्त्री ने बायकुंआ में कार्यकर्ता स्वाभिमान सम्मैलन कर दिया। हालांकि खराब मौसम के चलते इस सम्मेलन में ज्यादा भीड़ नही पंहुच पाई लेकिन लंबे समय से हाशिये पर रहे सुखराम चौधरी विरोधी भाजपा के नेता एक मंच पर जुटे, जो आने वाले समय में निश्चित तौर पर ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के लिए चिंता का सबब बन सकते हैं। रोशन लाल शास्त्री ने विकास में भेदभाव का आरोप लगाया।
और अगर बात यहीं थम जाएं तो डैमेज कंट्रोल हो भी सकता था लेकिन जो सूचना है, उसके मुताबिक अगस्त माह मे बाहती बिरादरी के ही एक युवा नेता सुनील चौधरी के भी चुनावी ताल ठोकने की खबरें छन छन कर आ रही है। यदि ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर सुखराम चौधरी चौतरफा घिर जायेंगे और तब शायद डेमेज कंट्रोल के आसार भी कम हो जाएं। क्यूंकि सुनील चौधरी जनहित के कईं मुददों को लेकर सुखराम चौधरी के विरोध में भी खड़े हुए है और अनशन तक किया है। युवाओं में उनकी अच्छी पैंठ बनने लगी है।
इन सबके बीच कांग्रेस को संजीवनी मिलती नजर आ रही है। पिछले दो दिनों में ही पूर्व विधायक चौधरी किरनेश जंग की मौजूदगी में दो स्थानों पर 25 के करीब परिवार भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए हैं।
अब बात यह आती है कि आखिरकार सुखराम चौधरी के खिलाफ अपनों का ही रोश क्यों झलक रहा है। क्या ऊर्जा मंत्री ने पांवटा साहिब का विकास नही किया है या बात कुछ और है। जहां तक विधानसभा के डवलपमेंट की बात है तो वो तो सभी के समक्ष है और गत दिवस भाजयुमो पांवटा साहिब के अध्यक्ष चरणजीत सिंह ने भी विकास को लेकर एक प्रेस नोट जारी कर कहा था कि पांवटा साहिब में इतना विकास पहले कभी नही हुआ, इसलिए विरोधियों को यह हजम नही हो रहा।
अब सवाल यह है कि यदि विकास हुआ है तो फिर भाजपा से जुड़े कुछ नेताओं की नाराजगी की वजह आखिर क्या है। पुष्ट तो नही लेकिन अपुष्ट जानकारी और राजनैतिक जानकारों की मानें तो सुखराम चौधरी ने व्यक्तिगत की बजाय सार्वजनिक विकास को तरजीह दी है। ऐसे में कुछ लोगों के निजी हित तो भेंट चढ़ेंगे ही। नाराज चल रहे नेता भी यह कहते है कि विकास तो एक निरंतर प्रक्रिया है। लेकिन शायद इसमे एक बड़ी बात यह भी है कि विकास करवाने का माद्दा और सोंच रखकर उसे अमलीजामा पहनाने की काबिलियत हो तभी विकास संभव है। वरना प्रदेश में 68 विधानसभा क्षेत्र है और उनमे से अपनी विधानसभा के लिए बड़ी बड़ी सौगातें लाना भी जन प्रतिनिधि की काबिलियत पर निर्भर करता है।
हालांकि राजनैतिक जानकारों की मानें तो ऊर्जा मंत्री में कुछ खामियां भी है। एक तो वह किसी भी कार्यक्रम में समय पर नही पंहुचते, लोगों को घंटो इंतजार करवाते हैं और दूसरा कुछैक नेता व ठेकेदारों को ही साथ लेकर चलते है। पार्टी के पुराने वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ताओं को हाशिये पर रखा हुआ है और उन्हे मनाने के भी प्रयास नहीं किये है। ये कारण भी माना जा रहा है कि उनके प्रति कुछ नेताओं में जो रोश है, वह उन नेताओं के प्रयासों से धरातल पर दिख रहा हो।
वहीं, यह भी इतिहास रहा है कि ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी एक मंझे हुए राजनितिज्ञ हैं, और अक्सर समय पर डैमेज कंट्रोल करने मे माहिर माने जाते हैं, लेकिन इस बार चुनाव से पहले जो हालात बन रहें हैं वो विपक्ष के लिए भी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है कि भाजपा में फूट है और कईं नेता टिकट की दौड़ में शामिल है, जैसा कि पहले भाजपा द्वारा कांग्रेस को कहा जाता था। बहरहाल, राजनीति में हर संभावना व विकल्प हमेशा खुले रहते हैं, इसलिए आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठता हैं ये तो समय के ही गर्भ में छिपा हुआ है।