Shillai: अब्दुल कलाम जैसा बनने के सपने तो छोड़ ही दें शिलाई के विद्यार्थी- बच्चों का भविष्य अंधकार में ddnewsportal.com
Shillai: अब्दुल कलाम जैसा बनने के सपने तो छोड़ ही दें शिलाई के विद्यार्थी
क्षेत्र के स्कूलों में विज्ञान संकाय न के बराबर, स्कूलों में स्टाॅफ लाने की बजाय ट्रांसफर पर जोर
जानिए, उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के क्षेत्र के बहुत पुराने कफोटा व आस-पास के स्कूलों के हालात...
हिमाचल की सरकारें अक्सर सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के दावे करती रहती है लेकिन जमीनी हकीक़त यदि जानें तो सरकार के दावे हवा हवाई होते प्रतीत होते दिखाई देते हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूल भगवान भरोसे है और बच्चों का भविष्य अंधकार में। ऐसा लगता है जैसे नेताओं को सिर्फ वोट से मतलब है। जब सुविधाओं या क्षेत्र के भविष्य की बात आती है तो वह आंखे बंद कर बैठ जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी स्कूलों के हालात पर हम एक सीरीज के माध्यम से जनता को बता रहे हैं कि किन परिस्थितियों में क्षेत्र का भविष्य अंधकार में डूबता जा रहा है।
इसकी शुरूवात हमने सिरमौर जिला के शिलाई क्षेत्र से की हैं। यदि आपके इलाके में भी सरकारी स्कूलों में स्टाॅफ और अन्य सुविधाओं की कमियाँ है तो अपने स्कूल की फोटो सहित डिटेल हमसे 9736157400 व्हाट्सएप नंबर पर सांझा करें। हमारा प्रयास रहेगा कि आपके बच्चों के भविष्य के लिए हम आपके क्षेत्र के शिक्षण संस्थान की समस्या को प्रकाशित कर सरकार के समक्ष लायेंगे। हालांकि कुछ लोग जनहित व देश के भविष्य के इस मुद्दे को भी राजनैतिक चश्मा पहनकर देखेंगे और सवाल उठायेंगे, लेकिन यह आपको तय करना है कि हमने राजनीति करनी है या अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोंचना है।
आज हम बात करेंगे शिलाई विधानसभा क्षेत्र के बहुत पुराने स्कूल रावमा पाठशाला कफोटा, शावगा कांडो और कमरऊ की। हमेशा से शिक्षकों पर राजनिति का अखाड़ा बने इस स्कूल के हालात इस वक्त दयनीय है। एक समय 12-13 पंचायतों के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का एकमात्र केन्द्र रहा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कफोटा लम्बे अरसे से स्टाफ की कमी से जूझ रहा है।किसी समय सतौन से लेकर शिलाई तक विज्ञान और वाणिज्य संकाय में शिक्षा ग्रहण करने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए एकमात्र विकल्प इस विद्यालय में अब न तो विज्ञान संकाय बचा और न ही वाणिज्य। बहुत लम्बे समय से विद्यालय में प्रवक्ता अंग्रेजी का एक पद, प्रवक्ता रसायन विज्ञान, प्रवक्ता भौतिक विज्ञान, प्रवक्ता जीव विज्ञान, प्रवक्ता गणित, प्रवक्ता आई टी, प्रवक्ता अर्थशास्त्र, प्रवक्ता वाणिज्य एक पद, सहायक लाइब्रेरियन और वरिष्ठ सहायक के पद रिक्त पड़े हैं जिसके कारण गरीब मेधावी विद्यार्थियों को विज्ञान और वाणिज्य संकाय में शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा के बावजूद या तो कला संकाय में प्रवेश लेने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है या फिर कर्ज लेकर पांवटा और नाहन जैसे दूरस्थ शहरों के लिए रूख करना पड़ रहा है। अब एक टीजीटी का भी तबादला कर दिया गया है। ट्रांसफर तो हो रही है लेकिन सरकार या सरकार के स्थानीय नुमाइंदे यहां किसी शिक्षक को लाने के लिए कोई रूचि नही दिखा रहे हैं, जिसका खामियाज़ा क्षेत्र के भविष्य को भुगतना पड़ रहा है।
आधुनिक समय में जब विज्ञान और वाणिज्य की शिक्षा हर विद्यालय में अनिवार्य होनी चाहिए ताकि हर विद्यार्थी तक सुलभ हो वहां 80 किलोमीटर के दायरे में एक भी विद्यालय में यह सुविधा नहीं है।
साथ लगते राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कमरऊ में पिछले शैक्षणिक सत्र तक कम से कम वाणिज्य संकाय का कुछ स्टाफ उपलब्ध था जिसके कारण कफोटा और आस पास के विद्यार्थी भी वाणिज्य संकाय के अध्ययन के लिए कमरऊ जा रहे थे। इस शैक्षणिक सत्र में वहां से भी वाणिज्य संकाय के एकमात्र प्रवक्ता के स्थानांतरण से अब विद्यार्थियों और अभिभावकों में रोष व्याप्त है। कमरऊ में अब सबसे महत्वपूर्ण अंग्रेजी विषय के प्रवक्ता का पद भी रिक्त हो गया है।
वहीं एक और विद्यालय राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय शावगा कान्डो में तो एकमात्र इतिहास विषय के प्रवक्ता होने के कारण और बाकि सभी पद रिक्त होने के चलते 10+1 और 10+2 कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या शून्य हो गई है, जबकि इसी सत्र के आरम्भ में यह विद्यार्थी संख्या 27 थी। यही हाल गिरिपार के अधिकांश विद्यालयों का है जिससे शिक्षण व्यवस्था डगमगा गई है। स्कूलों के ये हालात होने के कारण भी नेता सुध नही ले रहे तो क्या समझा जाए।
स्थानीय लोगों और विद्यालय प्रबंधन समितियों ने सरकार से आग्रह किया है कि हर हाल में ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों के विद्यालयों में स्टाफ की समुचित व्यवस्था करें ताकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम धरातल पर भी सार्थक सिद्ध हो सके।