हाटी की दीवाली: मुड़ा-शाकुली और बेडोली-असकली की खुशबू से महकेगा गिरिपार, इस दिन से पर्व का आगाज़... ddnewsportal.com

हाटी की दीवाली: मुड़ा-शाकुली और बेडोली-असकली की खुशबू से महकेगा गिरिपार, इस दिन से पर्व का आगाज़... ddnewsportal.com

हाटी की दीवाली: मुड़ा-शाकुली और बेडोली-असकली की खुशबू से महकेगा गिरिपार, इस दिन से पर्व का आगाज़...

पारम्परिक संस्कृति के धनी जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय के लोग बूढ़ी दिवाली पर्व की तैयारियों मे जुटे हुए है। नई दिवाली के ठीक एक माह बाद पूरे गिरिपार क्षेत्र मे मनाये जाने वाले इस अहम पर्व की तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी है। गृहणियों ने इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा व शाकुली बनाने का कार्य पूरा कर लिया है। जानकारी के मुताबिक शहरी क्षेत्र में 12 नवंबर को दीपावली का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। परंतु गिरिपार के करीब पौने तीन लाख से अधिक हाटी समुदाय के लोग अब 12 दिसम्बर को बूढ़ी दीवाली का पर्व मनायेंगे। बूढ़ी दीवाली का यह त्यौहार सिरमौर जिले के गिरिपार के घणद्वार, मस्त भौज, जेल-भौज, आंज-भौज, कमरऊ, शिलाई, रोनहाट व संगड़ाह क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौंसार बावर में भी मनाया जाता है। बूढ़ी दीवाली के इस त्यौहार को परंपरागत

तरीके से मनाने के लिए क्षेत्र के ग्रामीण कई दिन पहले से ही तैयारी में जुट जाते है। इन दिनों ग्रामीण अपने घरों लिपाई-पुताई कर रहे है। बूढ़ी दीवाली का पांरपरिक व्यंजन मुड़ा है जो कि गेंहू को उबालकर सूखाने के बाद कड़ाई में भूनकर तैयार किया जाता है। इस मूड़े के साथ अखरोट की गीरी, खील, बताशे व मुरमुरे आदि मिलाए जाते है। इस पर्व की पूर्व संध्या पर घर पर पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन बेडोली और असकली आदि बनाई जाती है। जिसे शुद्ध घी के साथ खाया जाता है। 

ये रहता है खास-

बूढ़ी दीवाली के दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशालें जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटो तक टीले व धार पर लोकनृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। एक दूसरे से मिलकर दीवाली की बधाई दी जाती है। यह पर्व तीन से सात दिन तक चलता है। इस दौरान मशाल नृत्य, भियूरी और हारूल नृत्य की शानदार प्रस्तुति होती है। 
हांलाकि अब कुछ क्षेत्र में लोग शहरी संस्कृति के चलते दीवाली ही मनाते है। लेकिन ज्यादातर एरिया अब भी बूढ़ी दीवाली ही मनाता है। बहरहाल, गिरिपार क्षेत्र बूढ़ी दीवाली पर्व मनाने को तैयार है।