पांवटा गुरूद्वारा साहिब में आज भी कायम है कवि दरबार सजाने की परंपरा- ddnewsportal.com
होला मोहल्ला विशेष
पांवटा गुरूद्वारा साहिब में आज भी कायम है कवि दरबार सजाने की परंपरा
सजता है 52 कवियों का दरबार, सर्वधर्म समभाव की दिखती है झलक
कहते हैं कि सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने 336 वर्ष पूर्व जब पांवटा नगर बसाया तो उस समय उन्होने होला महल्ला पर कवि दरबार की
शुरुवात की। उस दौरान शुरू की गई 52 कवियां की कवि दरबार सजाने की परंपरा आज 336 साल बाद भी कायम है। श्री गुरूद्वारा पांवटा साहिब की ओर से इस बार 337वां होला महल्ला मनाया जा रहा है। जब से यह मोहल्ला मनाया जा रहा है। उस दौरान से ही गुरूद्वारा साहिब में कवि दरबार सजता है। और रोचक बात यह है कि इस दरबार मे सभी धर्मों के कवि पंहुचते हैं। जो सर्वधर्म समभाव की झलक प्रदर्शित करती है। श्री गुरू गोबिंद सिंह महाराज ने यमुना तट के किनारे कवि दरबार की स्थापना की। यहां पर 52 कवियों का कवि दरबार सजता हैं। इतिहासकारों का कहना है कि एक बार जब कवि दरबार सजा था और कवि अपनी अपनी रचनाएं सुना रहे थे। तो बगल से बह
रही यमुना नदी के शोर से कवि दरबार में व्यवधान पड़ रहा था। तब श्री गुरूगोबिंद सिंह जी महाराज ने यमुना जी से निवेदन किया कि यहां पर शांत होकर बहे। तब से कवि दरबार के पास से आज भी यमुना नदी शांत होकर बहती है। आज भी यहां पर यमुना नदी का शोर नहीं है। जबकि इसके आगे व पीछे यमुना नदी की कल-कल ध्वनि सुनाई देती है। इसके अलावा गुरू जी ने यहां पर अपनी बहुत सी वाणी की रचना की। प्रबंधक कमेटी गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब के उपप्रधान जत्थेदार सरदार हरभजन सिंह, प्रबंधक जागीर सिंह और कोषाध्यक्ष गुरमीत सिंह आदि ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की शिवालिक पहाडियों की गोद में यमुना नदी के तट पर बसा खूबसूरत नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई यादें अपने में समेटे हुए है। गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज ने ही इस शहर की नींव रखी। और जीवन के अमूल्य साढ़े चार वर्ष यहीं बिताए। सिरमौर रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश के निमत्रंण पर गुरू गोंबिद सिंह महाराज 1685 ईंसवी में पांवटा आए। गुरू जी का यहां पांव टिका तो इस शहर का नाम पांवटिका हुआ और बाद पांवटा साहिब हो गया। इतिहासकारों मुताबिक ‘पांव टिकयों सतिगुर को आनंदपुर ते आए। नाम धरयों इस पांवटा, सब देसन प्रगटाए।’ गुरू जी की निशानियां आज भी इस गुरूद्वारे में विद्यमान है। उनकी लेखनी व उनके अस्त्र-शस्त्र जिन्हे आज भी यहां पर श्रद्वालुओं को देखने के लिए शीशे के शो-केस में सजाए गए है। यहां पर देशभर के विभिन्न शहरों व विदेशों से लाखों की संख्या में संगते आती है। श्रद्वालु यहां के यमुना नदी के तट पर पवित्र स्नान करते है। गुरूद्वारा साहिब में मत्था टेकते है। गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से श्रद्वालुओं व संगत के ठहरने-रहने की पूरी व्यवस्था की जाती है। गुरूद्वारे में अटूट लंगर चलता है। अब तो यह शहर अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी अलग व विशेष पहचान बना चुका है। इस बार भी होला महल्ला पर आज यानि 28 मार्च को पूर्णिमा के अवसर पर रात को कवि दरबार सजेगा। जिसमें उच्च कोटि के पंथक कवि अपने सुंदर रचनाओं को सुनाकर संगतो को निहाल करेंगे। गुरूद्वारा श्री पांवटा साहिब की ओर से 337वां होला महल्ला इस बार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत सूक्ष्म रूप से शुरू हो चुका है। जो मंगलवार 30 मार्च तक मनाया जाएगा।