कभी भारत का वक्त बताने वाली कंपनी का कैसे हुआ टाइम खराब ddnewsportal.com
कभी भारत का वक्त बताने वाली कंपनी का कैसे हुआ टाइम खराब
जानिए, देश की पहली घड़ी कंपनी HMT किस कारण मिली मिट्टी में, किसने और कैसे दी मात...
कभी वह भारत को वक्त बताती थी लेकिन आज उसका ही टाइम खराब हो गया। बात देश की पहली घड़ी निर्माता कंपनी HMT की हो रही है, जिसने एक बड़ा सबक दिया कि यदि समय और मांग के साथ आप बदलाव नही करते तो आपका पतन तय है। यही इस कंपनी के साथ भी हुआ।
आज हम आपको एक ऐसी अहम जानकारी देने जा रहे है जिसे जानना आपके लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये घटना कंपनी ही नही इंसान के जीवन से भी जुड़ी है कि यदि हम समय के साथ अपडेट नही होते तो हम पिछडेंगे ही।
HMT की स्थापना सन् 1953 में भारत में हुआ जो की एक सरकारी कंपनी थी जिसका full form Hindustan machine tools है जो उस समय के दौर में ट्रैक्टर के बहुत सारे पार्ट्स और भी बहुत सारी machine बनाती थी।
अब बात करते है HMT घड़ियों की-
एचएमटी की घड़ियां भारत में काफी फेमस थी लेकिन एचएमटी शुरू से ही घड़ियां नहीं बना रही थी। एचएमटी ने साल 1961 में जापान की Citizen Watch Company के साथ मिलकर बैंगलोर में एक कंपनी स्थापित की जहां इसने घड़ियां बनानी शुरू की। एचएमटी की पहली घड़ी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के हाथों लांच की गई थी। एचएमटी की पॉपुलर घड़ियों की बात करें तो उनमें HMT Janata, कोहिनूर, पाइलट, सोना आदि है।
इस कंपनी के पास भारत के सर्वश्रेष्ठ डिज़ायनर थे, इंजीनियर थे। बस नहीं थी तो इच्छा शक्ति समय के साथ चलने की और ग्राहकों को भगवान मानने की। सारी दुनिया क्वार्ट्ज़ टेक्नोलॉजी में आ चुकी थी लेकिन एचएमटी की ज़िद थी कि वह मैन्युअल चाबी भरने वाली घड़ियाँ ही बनायेंगे। कहा जाता है कि उसमे भी डिमांड सप्लाई का गैप इतना कि ग्राहकों को सालों इंतज़ार करना पड़ता था, रिश्वत देनी पड़ती थी। पॉवर फ़ुल लोगों को समय से घड़ी देकर एहसान कर और सबसे ज्यादा क्वार्ट्ज़ की इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ न बना कर अवैध रूप से विदेशी कंपनियों को मार्केट का हिस्सा देकर। एक समय भारत में बिकने वाली अस्सी प्रतिशत घड़ियाँ अवैध रूप से भारत आती थीं। मज़ेदार बात थी कि उन घड़ियों के विज्ञापन आदि भी होते थे, फुल ऑफिस थे, बस वैध तरीक़े से भारत में बिक नहीं सकती थीं। ग्राहक भी वही ख़रीदते, दुकानदार भी वही बेचते, बस भारत सरकार का भ्रम था कि भारत में हम केवल एचएमटी की घड़ी ही बिकने देंगे।
उत्तराखंड के रानीबाग में भी कंपनी ने एक फैक्ट्री लगाई। इसके पीछे एक पहाड़ी नाला बहता है। एचएमटी के कर्मचारी प्लास्टिक के डिब्बे में घड़ी के पुर्जे रख कर फेंक देते थे और उनके रिश्तेदार आगे जाकर उसे निकाल लेते थे और उसे घड़ी के साजो सामान वालों को बेचते थे।
फिर एंट्री हुई टाटा की, 1995 में टाइटन कंपनी आई। उन्होंने डिसाइड किया कि वह केवल इलेक्ट्रॉनिक घड़ी बनायेंगे। एचएमटी के पास उनसे मुक़ाबले की रणनीति यह कि हम सरकारी हैं,
सरकार से बोल किसी प्राइवेट कंपनी को न आने देंगे। पर टाटा भी इतने हल्के न थे। टाइटन ने एचएमटी से ही रिआटायर्ड अधिकारी, इंजीनियर लिए और पचास साल पुरानी कंपनी एचएमटी ने केवल एक साल के अंदर अपनी बादशाहत खो दी और टाइटन नंबर एक कंपनी हो गई। बस तीन सालों के अंदर एचएमटी की घड़ी भारत में कोई मुफ़्त ख़रीदने वाला न बचा। काफी अंतराल के घाटे के बाद 2016 में मजबूरन सरकार को HMT कंपनी को ताला लगाना पड़ा।
HMT कंपनी हमे यह सबक देती है कि जो व्यवसाय और समय के साथ नहीं चलता है, ग्राहकों का सम्मान नहीं करता है एक दिन वह मिट्टी में मिल ही जाता है। भले ही कभी उसकी मोनोपोली रही हो।