श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर 8 वर्ष बाद है ऐसा दुर्लभ...- ddnewsportal.com

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जानिये इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर बन रहा है कौन सा खास योग 

सिरमौर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं कमलकांत सेमवाल ने दी जानकारी, 8 वर्ष बाद है ऐसा दुर्लभ...

श्रीमद् भागवत भविष्यादि सभी पुराणों में अनुसार श्री कृष्ण जी का जन्म भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशि के चंद्रमा कालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के समय 6 तत्व भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अर्ध रात्रि काल, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र

एवं वृष का चंद्रमा और बुधवार या सोमवार को एक साथ होना बड़ी कठिनता से प्राप्त होता है। अनेकों वर्षों में कई बार श्री कृष्ण अष्टमी अर्ध रात्रि को वृष राशि का चंद्रमा होता है परंतु रोहिणी नक्षत्र नहीं होता। इस वर्ष 30 अगस्त 2021 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्राय: सभी तत्वों का दुर्लभ योग मिल रहा है जो कि पिछले 8 वर्षों के बाद बन रहा है। यह जानकारी देते हुए सिरमौर जिला के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं कमलकांत सेमवाल ने कहा कि 30 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अर्ध व्यापिनी अष्टमी तिथि सोमवार रोहिणी नक्षत्र एवं वृषस्थ चंद्रमा का दुर्लभ योग एवं पुण्य प्रदायक योग बन रहा है। निर्णय सिंधु धर्म ग्रंथ के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में यदि अष्टमी तिथि मिल जाए तो उसमें श्री कृष्ण जी की पूजा अर्चना करने से 3 जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं। रोहिणी नक्षत्र मे जन्माष्टमी हो वृष राशि का चंद्रमा हो तो वह जयंती कहलाती है। जयंती में बुधवार या सोमवार का योग आ जाए तो वह अत्यंत फलदायक हो जाती है। इस बार ऐसा ही दुर्लभ योग बन रहा है। जन्म जन्मांतर के पुण्य संचय से ऐसा योग मिलता है। जिस

मनुष्य को जयंती उपवास का सौभाग्य मिलता है उसके कोटी जन्मकृत पाप नष्ट हो जाते हैं। वह जन्म बंधन से मुक्त होकर परम दिव्य वैकुंठादि भगवत धाम को निवास करता है। उन्होंने कहा कि 30 अगस्त सोमवार को प्रातः ध्वजारोहण एवं संकल्प व्रतानुष्ठान करके "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" और "ऊं कृष्णाय वासुदेवाय गोविंदाये नमो नमः" आदि मंत्र का जाप करें। श्री कृष्ण नाम स्त्रोतपाठ, कीर्तन आदि तथा रात्रि के समय श्री कृष्ण बाल रूप की पूजा अर्चना, ध्वजारोहण, झूला झूलाना, चंद्र अर्घय दान, जागरण कीर्तन आदि शुभ कृत्य करने चाहिए। रात्रि को 12:00 बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खीरा फोड़कर एवं शंख ध्वनि सहित भगवान का जन्म उत्सव मनाए। जन्मोत्सव के पश्चात कपूर आदि प्रचलित कर सामूहिक स्वर में श्री भगवान की आरती स्तुति करें। फिर शंख में गंगाजल, दूध, फल कुश, फूल व गंधादि डालकर चंद्रमा को अर्घ्य देकर नमस्कार करें।