संघर्ष की प्रतिमूर्ति शीला पुंडीर ddnewsportal.com
अंतर्राष्ट्रीय महिला सप्ताह- 05
संघर्ष की प्रतिमूर्ति शीला पुंडीर
हर मुश्किलों को कठिन मेहनत और तपस्या से किया पार, आज एक बेटा डाँक्टर तो एक थानेदार
क्षेत्र की महिलाओं की भी है आदर्श, आध्यात्मिक ज्ञान से महिलाओं की जगा रही चेतना
आज समाज मे महिलाएं किसी दर्जे मे पुरुष से कम नही है। अनैकों फील्ड मे महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का डंका बजाया हैं। आज देश के हर कौने मे छोटे से छोटे शहर मे भी महिलाओं ने अपनी जिम्मैदारियों को बखूबी निभाकर देश के विकास मे अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रही है। अंतर्राष्ट्रीय महिला सप्ताह के दौरान हम ऐसी महिलाओं की उपलब्धियां आप सभी के समक्ष ला रहे हैं जो समाज को एक बड़ी प्रेरणा दे रही है। समाजसेवा हो या देश सेवा हर क्षेत्र मे अब महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के विकास मे अपना अहम योगदान दे रही हैं। ऐसी प्रेरणास्रोत्र शख्सियतों को देश दिनेश न्यूज पोर्टल का सैल्यूट..........
गिरिपार का ट्रांसगिरि क्षेत्र और समय वो जब महिलाएं क्षेत्र मे बाहर नौकरी तो दूर की बात वैसे भी नही निकलती थी। लेकिन उस दौर मे भी एक महिला ने जहां कुरीतियों को रौंदकर आगे बढ़ने की ठानी वहीं कड़ी मेहनत और संघर्ष से अपने बाद की महिलाओं के लिए भी एक रोड मैप तैयार करके दिया। बात कफोटा की ग्राम पंचायत दुगाना के गांव दुगाना की शीला पुंडीर
की हो रही हैं जो हाल ही मे शिक्षा विभाग से अधीक्षक ग्रेड-2 सेवानिवृत्त हुई है। अंतर्राष्ट्रीय महिला सप्ताह मनाया जा रहा हो और बात शीला पुंडीर की न हो तो सब बेमानी होगा। संघर्ष की प्रतिमूर्ति शीला पुंडीर का हौंसला, कठिन परिश्रम और तप का ही नतीजा है कि पति का साया भरी जवानी मे सिर से उठने के बावजूद उनके कदम नही लडखड़ाए। वह क्षेत्र की कुरीतियों को दरकिनार कर आगे बढ़ी और आज एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है कि क्षेत्र की महिलाएं ही नही बल्कि युवतियां भी उन्हे अपना आदर्श मानती है। आज घर के संस्कार और मेहनत के कारण उनके दोनो बेटे सफल है। प्रदीप पुंडीर आयुर्वेदिक चिकित्सक है तो दूसरे प्रवीण पुंडीर पुलिस विभाग मे एसएचओ के पद पर सेवाएँ दे रहे हैं। अपने सामाजिक दायित्व को बखूबी निभाने के साथ साथ शीला पुंडीर आध्यात्मिक ज्ञान से भी परिपूर्ण है तथा
अक्सर धार्मिक मौकों पर महिलाओं के बीच बैठकर इसे बांटते रहते है।
शीला पुंडीर का जन्म ग्राम पंचायत शिल्ला के गांव शिल्ला मे माता तुलसा देवी और पिता जोगेन्द्र सिंह के घर हुआ। बचपन से ही आध्यात्मिक वातावरण और सनातन संस्कारों के बीच पली-बढ़ी। प्रारंभिक शिक्षा शिल्ला और उच्च शिक्षा कफोटा विद्यालय से की। 1982 मे दुगाना निवासी शिक्षक बलवीर पुंडीर से इनका विवाह हुआ। इसी वर्ष वह आंगनवाड़ी वर्कर के तौर पर चयनित हुई और 14 वर्ष तक नन्हे बच्चों की नींव मजबूत करती रही। कालांतर मे दो पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। लेकिन फिर कालचक्र ने परिवार पर ऐसा कहर ढाया कि लाईलाज बीमारी से पति बलवीर पुंडीर का देहान्त हो गया। यहां से शीला पुंडीर का संघर्ष शुरू हुआ और मुश्किलों की हर बाधा को
पार करते हुए इस साहसी महिला ने क्षेत्र मे ऐसा मुकाम हासिल कर लिया कि आज हर कोई अपनी बेटी को शीला पुंडीर जैसा काबिल बनाने की सोंच रखता है। अपने दो नन्हे बेटों और परिवार का बोझ अपने कंधे पर धारण कर अपने पति के स्थान पर करूणामूलक आधार पर शिक्षा विभाग मे बतौर लिपिक 1998 मे कार्यभार संभाला। उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और ड्यूटी, घर का काम और बच्चों की शिक्षा दीक्षा सहित सामाजिक दायित्व को बखूबी निभाया। अब वह बतौर अधीक्षक ग्रेड-2 सेवानिवृत्त हो गई है। उनके दोनो बेटे आज कामयाब है और सरकारी नौकरी कर रहे हैं।