Himachal News: CM सुक्खू के मंत्री हुए केंद्र पर हमलावर, मोदी सरकार ने किया राज्य के साथ भेदभाव, पढ़ें किस मंत्री ने क्या कहा... ddnewsportal.com

Himachal News: CM सुक्खू के मंत्री हुए केंद्र पर हमलावर, मोदी सरकार ने किया राज्य के साथ भेदभाव, पढ़ें किस मंत्री ने क्या कहा...
हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार के मंत्री केंद्र सरकार पर हमलावर हुए हैं। बुधवार को एक के बाद चार मंत्रियों ने बयान जारी कर केंद्र की मोदी सरकार पर हिमाचल प्रदेश की अनदेखी का आरोप लगाया।
राज्य के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान और तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि केंद्र सरकार लगातार हिमाचल प्रदेश के साथ भेदभाव कर रही है। राज्य सरकार के कई मंत्रियों ने बार-बार केंद्र सरकार के मंत्रियों से मिलकर अपनी बात रखी है, लेकिन आश्वासन के सिवा हिमाचल प्रदेश के लोगों को कुछ नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि प्रदेश मंत्रिमंडल की पहली बैठक में प्रदेश सरकार ने राज्य के 1 लाख 36 हजार एनपीएस कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल की, जिससे नाखुश भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व एवं प्रदेश के नेताओं ने कर्मचारी विरोधी विचारधारा के चलते हिमाचल प्रदेश पर कई वित्तीय प्रतिबंध लगाए।
पुरानी पेंशन योजना लागू करने के बाद केंद्र ने हिमाचल को मिलने वाली ऋण सीमा में भारी कटौती की ताकि हमारी सरकार पर ओपीएस बंद करने का दबाव बना सके। केंद्र के पास एनपीएस के तहत प्रदेश के लगभग 9 हजार करोड़ रुपए फंसे हैं, जिसे केंद्र सरकार से वापिस लौटाने का बार-बारे आग्रह किया गया है। इस संबंध में कई बार प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व ने केंद्रीय नेताओं से मुलाकात कर कर्मचारी एवं प्रदेश हित में इस राशि को लौटाने की मांग रखी है। इस संबंध में अभी तक केंद्र की तरफ से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। केंद्र सरकार एनपीएस की जमा राशि लौटाने के बजाए प्रदेश पर कर्मचारियों को पुनः एनपीएस अथवा यूपीएस के दायरे में लाने के लिए लगातार पत्र भेज रही है।
उद्योग मंत्री एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री ने कहा कि वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश पर अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा आई थी। ऐसे बुरे वक्त में भी भारत सरकार ने राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए प्रदेश के लोगों की कोई सहायता नहीं की। स्वयं केंद्रीय दल ने आपदा उपरान्त आवश्यकता आकलन किया और हिमाचल में आपदा से हुआ नुकसान 9 हजार 42 करोड़ रुपये आंका था। लेकिन केंद्र ने हिमाचल प्रदेश के हितों का इस प्रकार तिरस्कार किया है कि लगभग दो वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के पश्चात आज तक प्रदेश को बतौर सहायता राशि एक रुपया भी नहीं दिया है। इस संबंध में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू स्वयं भी कई बार केंद्रीय मंत्रियों से मिलकर हिमाचल प्रदेश के हक को तुरंत जारी करने की मांग कर चुके हैं।
मंत्रियों ने कहा कि भाखड़ा बांध प्रबन्धन बोर्ड के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के प्रदेश के पक्ष में फैसले के बावजूद बीबीएमबी ने 4500 करोड़ रुपए का बकाया भी प्रदेश को नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र सरकार यह धनराशि राज्य को जारी कर दे तो हिमाचल आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को शीघ्र हासिल करेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने पिछले बजट में भाजपा शासित आपदा प्रभावित राज्यों को सीधे आर्थिक मदद दी, जबकि हिमाचल प्रदेश के लिए मल्टीलेटरल डेवलेपमेंट अस्सिटेंट शब्द का इस्तेमाल किया गया। जब मदद की परिभाषा में ही भेदभाव था, तो हिमाचल प्रदेश को मदद कहां से मिलनी थी। यह केंद्र सरकार के सौतेले व्यवहार का स्पष्ट प्रमाण है।
हर्षवर्धन चौहान और राजेश धर्माणी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए विशेष राज्य का दर्जा देना तो दूर, केंद्र ने हिमाचल से उसका हक भी छीना है। हिमाचल प्रदेश के विकास को रोकने के लिए जानबूझ कर साजिशें की जा रही हैं, जिनमें प्रदेश भाजपा के बड़े नेता मुख्य भूमिका में हैं। नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर सहित अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता लगातार दिल्ली प्रवास पर जाते हैं, वहां केंद्रीय नेतृत्व से मिलते हैं और न जाने ऐसी क्या बातें वहां पर होती हैं कि हिमाचल संबंधी विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाती है या फिर धूल फांकती रहती हैं।
उधर, राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने केंद्रीय रेल राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू द्वारा दिए गए बयान को भ्रामक और तथ्यात्मक रूप से गलत बताया है। दोनों मंत्रियों ने बयान जारी करते हुए कहा कि भानुपल्ली-बिलासपुर रेल लाइन की प्रारंभिक अनुमानित लागत लगभग 3,000 करोड़ रुपए थी, जिसमें केंद्र सरकार 75 प्रतिशत धनराशि देने के लिए प्रतिबद्ध है और भूमि अधिग्रहण की अनुमानित लागत 70 करोड़ रुपए आंकी गई है।
मंत्रियों ने बताया कि रेल लाइन के निर्माण की कुल लागत अब दोगुनी से बढ़कर 7,000 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है। इसके अतिरिक्त, भूमि अधिग्रहण की लागत बढ़कर 1,100 करोड़ रुपए हो गई है, जबकि केंद्र सरकार ने इस परियोजना के लिए 70 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि प्रदान करने से साफ इनकार कर दिया है, जिसके कारण भूमि अधिग्रहण पर पूरा खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है।
जगत सिंह नेगी और विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि 1 मार्च, 2023 से वर्तमान राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश में रेलवे विकास परियोजनाओं के लिए रेल विकास निगम लिमिटेड को लगभग 300 करोड़ रुपए का योगदान दिया है। यह केंद्रीय रेल राज्य मंत्री द्वारा किए गए दावों का खंडन करता है, क्योंकि उनके बयान तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।
मंत्रियों ने कहा कि रेल मंत्रालय की वेबसाइट वार्षिक पिंक बुक प्रकाशित करती है, जिसमें एक वित्तीय वर्ष के लिए नियोजित रेलवे निर्माण परियोजनाओं की सूची होती है। हालांकि, नवीनतम पिंक बुक अभी तक अपलोड नहीं की गई है, जिससे यह दावा सत्यापित करना असंभव है कि हिमाचल प्रदेश के लिए 11,806 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। मंत्रियों ने स्पष्ट किया कि यह राशि कोई विशेष अनुदान नहीं है, बल्कि केवल बजटीय अनुमान है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2021-22 में भानुपल्ली-बिलासपुर रेल लाइन के लिए 1,289 करोड़ रुपए के आवंटित बजट के मुकाबले केवल 325 करोड़ रुपए खर्च किए गए। जबकि वर्ष 2022-23 में 1,289 करोड़ रुपए में से केवल 730 करोड़ रुपए का उपयोग किया गया और वर्ष 2023-24 में केंद्रीय बजट पेश होने तक आवंटित 1,289 करोड़ रुपए में से केवल 936 करोड़ रुपएही खर्च किए गए। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में कुल 3,867 करोड़ रुपएके बजट के मुकाबले केवल 1,991 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री बिट्टू के बयान में तथ्यात्मक सटीकता का अभाव है। उन्होंने कहा कि ये बजटीय प्रावधान सभी राज्यों के लिए किए गए हैं और हिमाचल प्रदेश को कोई विशेष लाभ नहीं मिला है। इसके विपरीत, कुछ अन्य राज्यों को रेलवे परियोजनाओं के लिए काफी अधिक वित्तीय सहायता दी गई है।
जगत सिंह नेगी और विक्रमादित्य सिंह ने बताया कि वर्ष 2014 से 2024 के बीच हिमाचल प्रदेश को उत्तराखंड के मुकाबले केंद्र सरकार से बहुत कम वित्तीय सहायता मिली है। उन्होंने कहा कि ऐसी वित्तीय सहायता केंद्र प्रायोजित योजनाओं का हिस्सा है, जो हिमाचल प्रदेश के लोगों पर कोई उपकार नहीं बल्कि उनका संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहकारी संघवाद की बात करते हैं, जबकि विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर जैसे अन्य भाजपा नेता संवैधानिक रूप से अनिवार्य वित्तीय सहायता को केंद्र सरकार की ओर से एक उदार संकेत के रूप में पेश करते हैं।