आधी सदी से मुद्दे पर सेकी जा रही राजनैतिक रोटियां ddnewsportal.com

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क्या इस बार ख्वाहिश पूरी करेगा जिन्न या....

पांच दशकों से चुनावी साल मे बोतल से निकलता है मुद्दा, फिर पांच वर्ष के लिए...

लोस या विधानसभा चुनाव आते ही नेताओ को आती गिरिपार के 3 लाख हाटियों की याद, आधी सदी से मुद्दे पर सेकी जा रही राजनैतिक रोटियां, इस बार नेताओं की भी अग्नि परीक्षा....

दिनेश कुमार पुंडीर-

पिछले कुछ दिनों से फिर से हाटी जनजातिय मुद्दे का शोर सुनाई दे रहा है। अगले साल विधानसभा के चुनाव जो आने वाले हैं। इस मुद्दे पर चर्चाएं अब गिरिपार क्षेत्र मे आम हो जाएगी। हों भी क्यों न, जिला के चार विधानसभाओं मे दोनों पार्टियों के नेता हाटी के मुददे को राजनैतिक हथियार जो बनाते हैं। फिर से बंद बोतल से चुनावी आहट सुनकर हाटी जनजातिय मुद्दे का जिन्न बाहर आ जाएगा। लेकिन इस बार मौसम कुछ बदला बदला सा नजर आ रहा

है क्योंकि पहल हाटी समुदाय के लोगों ने कर डाली है। लगता है इस बार नेताओं की भी बड़ी अग्नि परीक्षा होने वाली है। 
दरअसल, आधी सदी बीत जाने के बाद भी इस बार फिर से गिरिपार क्षेत्र की करीब सवा 3 लाख की हाटी समुदाय की आबादी क्षेत्र को जनजातिय दर्जा दिलाने के लिए प्रदेश व केंद्र सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही हैं। लोग कहते सुनाई दे रहे है कि चलो चुनावी आहट से ही सही लेकिन इस चुनावी कुंभ मे यदि क्षेत्र के लोगों की चिरकाल से चली आ रही मांग पूरी होती है तो उनके लिए इससे बड़ा खुशी का मौका कोई और नही हो सकता। हालांकि जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक मामला अब केंद्र सरकार के पास अटका पड़ा है और यदि खुद पीएम इसमे हस्तक्षेप करें तो ज्यादा देर नही लगेगी मांग को पूरा करने में। प्रदेश सरकार भी चाहेगी कि विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे से सिरमौर मे राजनैतिक लाभ लें। बात करें क्षेत्र की तो जिला सिरमौर के चार विधानसभा क्षेत्र की 144 पंचायत मे इस मुहिम को सिरे चढ़ाने की हाटी केंद्रीय समीति द्वारा कौशिश तेज हो गई है। आज 25 दिसंबर को सभी पंचायतों में हाटी की बैठकें रखी गई है जिसमें हाटी को जनजातीय दर्जा देने की मांग के प्रस्ताव पास कर सीधे प्रधानमंत्री को भेजे जायेंगे। अब हाटी आर-पार की लड़ाई का मन भी बना रहे हैं और चुनाव के वहिष्कार की बातें भी हो रही है। जो नेताओं की भी अग्नि परीक्षा लेने वाला है।
हाटी समुदाय तो पिछले 50 वर्षों से दोनो दलों से सवाल पूछ रही है कि आखिर उनकी मांग पूरी भी होगी या सिर्फ इसे चुनावी हथियार के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के पहली बार सत्ता मे आने व नाहन में चुनावी सभा में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए दिए आश्वासन और प्रदेश की सरकार द्वारा गिरिपार की जनजातीय सर्वे की रिपोर्ट केन्द्र को भेजे जाने के बाद ट्रांसगिरी क्षेत्र के तीन लाख हाटियों की उम्मीदें फिर से जगी थी। लेकिन दोनों जगह केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकारें होने के बावजूद इस मामले को सिरे नही चढाया जा रहा जिससे जनता मे आक्रोश बढ़ रहा है। 

                                                          
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हाटी समुदाय का ट्रांसगिरी क्षेत्र-

जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र काफी व्यापक है। यह गिरि नदी के पास का ईलाका है। इसमे शिलाई विधानसभा क्षेत्र की तहसील शिलाई, कमरउ तहसील, रोनहाट उप-तहसील, पांवटा विधानसभा क्षेत्र के आंज-भौज क्षेत्र, रेणुका विधानसभा क्षेत्र की संगडाह, नौहराधार व पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के राजगढ़ तहसील की 144 पंचायतों में करीब तीन लाख से अधिक हाटी समुदाय के लोग रहते है। हाटी समिति केंद्रीय कार्यकारिणी के अध्यक्ष डाॅ

अमीचंद कमल और महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने बताया कि हाटी समुदाय के लोग जनजाति दर्जे की मांग को लेकर 50 सालों से भी अधिक समय लगातार संघर्ष कर रहे है। हाटी लोग जौनसार बावर की तर्ज पर जनजाति की मांग कर रहे है। लोगों का तर्क है कि जब ट्रांसगिरि के हाटियों व जौनसार बाबर क्षेत्र में रहने वाले जौनसारियों का रहन-सहन, धार्मिक परपंरा, खान-पान, रीति-रिवाज व पहरावा व भोगोलिक सरंचना एक समान है तो फिर हाटियों को जनजाति के दर्जे से वंचित रखना अनुचित है। 
                                                       
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1967 मे जौंसार बाबर को मिला है जनजाति का दर्जा- 

पड़ोसी राज्य उत्तराखंड, जो पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, के जौंसार बावर क्षेत्र के जौनसारियों को जनजाति का दर्जा 1967 में मिल चुका है। जबकि दोनो क्षेत्रों मे बहुत सारी समानताएं हैं। उस समय गिरिपार क्षेत्र को यह दर्जा नही मिला। तभी से इसी के साथ लगते क्षेत्र के हाटियों ने भी जनजाति की मांग करते आ रहे हैं। राजनैतिक कारणों से मांग की सुनवाई न होने के कारण उसके बाद ट्रांसगिरि क्षेत्र के किलौड़ से लेकर राजगढ़ तक हाटी समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर आंदोलन करने का निर्णय लिया। जनजाति का दर्जा देने के लिए समितियों का गठन किया गया। मांग उठाने के लिए प्रतिनिधिमंडल सरकार से मिला। 1986 में केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार को हाटी जनजाति की रिपोर्ट पेश करने को कहा। गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेजी। जिसमें हाटियों की मांग को जायज बताया गया। 1991 में विधानसभा ने सदन में हाटी को जनजाति का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को अपनी सिफारिश भेजी। इसके बाद केंद्र के एससी और एसटी आयोग में जनजाति दर्जे की फाइल धूंल फांकती रही। उसके बाद फिर प्रयासों में तेजी आई तो आरजीआई की टीम को क्षेत्र की एक एथनोलोजिकल सर्वे रिपोर्ट भेजी गई जिस पर आरजीआई द्वारा कुछ आपत्तियां लगाई गई। जिन बिंदुओं पर आपत्ति थी उसकी दौबारा

से सर्वे रिपोर्ट आरजीआई को तीन माह पूर्व भेजी गई है। इस रिपोर्ट मे भी क्षेत्र के जनजातीय दर्जा की मांग को सही ठहराया गया है। बावजूद इसके अभी तक रिपोर्ट पर आरजीआई की अगली कार्रवाई नही हुई है जिससे क्षेत्र मे रोश पनप रहा है। इसी रोश के चलते आज शनिवार को क्षेत्र की 144 पंचायतों मे एक साथ बैठकें होनी है, जिसमे क्षेत्र की दशकों पुरानी मांग को पूरा करने के लिए प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजे जायेंगे। उसके बाद समीति का अगला कदम आंदोलन प्रस्तावित है।