HP Monsoon Session: पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के निर्माता डाॅ परमार को भारत रत्न की पैरवी, विधानसभा में प्रस्ताव पारित ddnewsportal.com

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HP Monsoon Session: पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के निर्मता डाॅ परमार को भारत रत्न की पैरवी, विधानसभा में प्रस्ताव पारित 

हिमाचल पहाड़ी प्रदेश के निर्माण में अपनी सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय डाॅ यशवंत सिंह परमार को भारत रत्न देने की हिमाचल प्रदेश ने पैरवी की है। इस बाबत विधानसभा में गुरुवार को सर्वसम्मति से सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एकजुटता दिखते हुए हिमाचल निर्माता व प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार को भारत रत्न सम्मान देने का प्रस्ताव पारित किया। अब इसे केंद्र को भेजा जाएगा। यह प्रस्ताव गैर सरकारी सदस्य दिवस पर प्रस्तुत किया गया। नाहन के कांग्रेस विधायक अजय सोलंकी ने डॉ. परमार को भारत रत्न सम्मान दिए जाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। विधानसभा में सभी सदस्यों ने डॉ. परमार की ओर से हिमाचल के लिए दिए गए योगदान को याद किया और भारत रत्न की पैरवी की। उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि यह लोगों की भावना से जुड़ा हुआ विषय है। डॉ. परमार के दिए योगदान के लिए किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं, भारत रत्न के लिए सभी हिमाचल एकजुट हैं।

वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर बोले, परमार को भारत रत्न देने की पैरवी पहले होनी चाहिए थी। अग्निहोत्री ने कहा कि जब तक हिमाचल है, तब तक डॉ. परमार की बात होगी। कई सदस्यों ने कहा कि यह प्रस्ताव पहले आना चाहिए था। वह कहते हैं कि देर आए, दुरुस्त आए, पर आए तो आए।

वर्ष 1971 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो डॉ. परमार ने रिज मैदान से हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की घोषणा कराई थी। उन्होंने हिमाचल प्रदेश की संस्कृति, बोली और मेलों का संरक्षण किया। हिमाचल को पंजाब में लिया जा रहा था, लेकिन परमार ने ऐसा नहीं होने दिया। भू सुधार अधिनियम उन्हाेंने लाया। अगर इसकी धारा 118 न होती तो हिमाचल भी बिक गया होता। वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि भारत रत्न के अलग-अलग मापदंड होते हैं।

अब तक 53 महान विभूतियों को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। विधानसभा में प्रस्ताव लाने के बजाय सरकार सीधे केंद्र से भी सिफारिश कर सकती थी। डॉ. परमार को भारत रत्न देने के लिए विधानसभा के सभी सदस्य एक हैं। यह बात पहले होनी चाहिए थी। चलो देर से सही, उचित है। वहीं, विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि पहले विधानसभा में बैठने के लिए बेंच लगे होते थे। 1985 में यहां कुर्सियां लगाई गईं। धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदल गया। हममें से किसी ने परमार के साथ काम नहीं किया है। यह मान-सम्मान देने की बात है।