Festival: हिमाचल प्रदेश में धार्मिक आस्था का एक पर्व ऐसा भी ddnewsportal.com

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शिलाई: क्षेत्र के नैनीधार में बिशु मेले में पंहुचे लोग।

हिमाचल प्रदेश में धार्मिक आस्था का एक पर्व ऐसा भी 

गिरिपार क्षेत्र में बिशु मेलों का दौर हुआ शुरू

बैसाख की संक्रांति से होता है आगाज, एक माह तक अलग-अलग स्थानों पर होगा आयोजन, ये रहता है विशेष...

धर्म, आस्था, संस्कृति व पर्व के धनी जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र मे गुरुवार से बिशु मेलों का आयोजन शुरु हो गया है। यह आयोजन बैसाख की संक्रांति के दिन से मस्तभोज के शरली बिशु मेले से आरंभ हुआ। अगले एक माह तक गिरिपार क्षेत्र में जगह जगह इन मेलों का आयोजन होगा जिसमे क्षेत्र के लोग बढ़ चढ़कर भाग लेकर अपनी संस्कृति को बनाए रखने में योगदान देते है। 

प्रदेश भर में अनेंको देवी-देवताओ के पूजन व मेलों की कई विशेष परंपराएं है। इसी तरह सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र में भी बिशु मेले की ऐसी परंपराए है जिसे जनता सदियों से निभा रही है। गिरिपार मे सदियों से हर साल विभिन्न स्थानों पर बिशु मेलों को आयोजन होता रहता है। यह आयोजन बैसाख संक्रांति से शुरु होता है। क्षेत्र के शरली गांव मे संक्रांति से बिशु मेले के साथ ही 14 अप्रैल को क्षेत्र मे इस पर्व का आगाज हो रहा है। इस बीच पूरे एक

माह क्षेत्र मे दर्जनों स्थानो पर बिशु मेलों का आयोजन होता रहता है। यह आयोजन क्षेत्र के गिरनौल, शिलाई, कफोटा, कांडो दुगाना, तिलौरधार, कान्टी मश्वा, सतौन, सुईनल व जाखना, चानपुरधार समैत संगड़ाह के अनैकों स्थानों पर होता है। पूरे  माह ये आयोजन जगह जगह चलते रहते है। इन मेलो में श्रद्वालु स्थानीय कुल देवता को पालकी में बिशु मेले में ले जाते है। वहां मेले में आने वाले लोग उनके दर्शन करेगें। फिर उसी दिन शाम को देवता की पालकी

वापस अपने-अपने क्षेत्रो के मंदिरो में लौट जाएगी। यह बिशु मेले जहां लोगो की आस्था के प्रतीक है वहीं बिलुप्त हो रही पारंपरिक संस्कृति की मिसाल पेश करती है। बहरहाल 14 अप्रैल से गिरिपार क्षेत्र मे बिशु मेलों का आगाज हो गया है। आपको बता दें कि इन बिशु मेले का पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जोंसार में भी गिरिपार क्षेत्र की तरह ही आयोजन होता है। साथ ही सिरमौर से सटे जिला शिमला के कुछ इलाकों में भी बिशु मेले मनाए जाते हैं। 

ठोडो नृत्य रहता है विशेष आकर्षण-

गिरिपार क्षेत्र में होने वाले बिशु मेलों में युवक युवतियां नए-नए परिधानों में पहुंचते हैं। इस दौरान जहां रासा नृत्य पेश होता है, वहीं पारंपरिक ठोडो नृत्य आकर्षण का केंद्र होता है। ठोडो नृत्य की इस परंपरा में कौरव पांडवों के वशंजों के बीच एक ऐसी जंग होती है जो बिना रक्तपात के संपन्न होती है। इस नृत्य में मोटा सुथन पहनकर धनुष बाण से शाठी पाशी एक दूसरे पर तीर छोड़ते हैं। सुईनल, जाखना व कफोटा आदि समेत संगड़ाह के इलाके
में विशेषकर यह नृत्य होता है।

■ ये है धार्मिक मान्यता-

धार्मिक मान्यता है कि कुल देवता की पालकी को बिशु मेलों में लाया जाता है, ताकि क्षेत्र में सुख-समृद्धि बनी रहे। अगर पालकी नहीं ले जाते तो प्राकृतिक आपदा जैसी घटनाएं
होती हैं। हालांकि गिरिपार के ऊपरी शिलाई क्षेत्र में अभी भी बिशु मेलों की खूब रौनक रहती है और युवाओं व युवतियों में बिशु मेलों को लेकर खूब उत्साह रहता है। परंतु कई गांवों से रोजगार व शिक्षा के लिए युवाओं का शहरों की ओर पलायन होने से यह शौक धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।