हिमाचल का सूचना आयोग बन गया है सफेद हाथी- फैडरेशन ddnewsportal.com

हिमाचल का सूचना आयोग बन गया है सफेद हाथी- फैडरेशन ddnewsportal.com

हिमाचल का सूचना आयोग बन गया है सफेद हाथी

हिमाचल आरटीआई एक्टिविस्ट फेडरेशन ने उठाई वर्तमान कमीशन की जुडिशल इंक्वायरी करने की मांग।

हिमाचल प्रदेश आरटीआई एक्टिविस्ट फेडरेशन की बैठक प्रधान राजेंद्र मोहन रमौल की अध्यक्षता में पांवटा साहिब के विश्राम गृह में संपन्न हुई। जिसमें आरटीआई एक्टिविस्ट को आ रही कठिनाइयों के बारे में चर्चा हुई। बैठक में सभी ने एकमत से कहा कि आरटीआई एक्टिविस्ट की कोई सुनवाई

हिमाचल प्रदेश आयोग द्वारा नहीं की जा रही है। आरटीआई एक्टिविस्ट बुरी तरह से हतोत्साहित है और उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। इस बैठक में यह भी मुद्दा उठाया गया कि गत 3 साल से अब तक कोई भी एनुअल रिपोर्ट नहीं बनी है, जिसका विधानसभा में रखा जाना आवश्यक है। यही नहीं ब्यूरोक्रेट्स को जांच संरक्षण दिया जा रहा है। वहीं आरटीआई एक्टिविस्ट को हर बात पर प्रताड़ित किया जाता है। इस बैठक में हिमाचल प्रदेश सूचना आयोग के खिलाफ काफी गुस्सा नजर आया। सभी सदस्य एक मत है कि आयोग का

काम सूचना उपलब्ध कराना है जबकि इसके विपरीत वर्तमान आयोग सूचना उपलब्ध कराना तो दूर नौकरी पेशा अधिकारियों को जिन्हें सूचना देने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी, उनसे भी सूचना उपलब्ध नहीं करा रहा है। सभी ने एकमत से मांग की है कि वर्तमान कमीशन की जुडिशल इंक्वायरी की जाए, जिससे आरटीआई एक्टिविस्ट को अपनी लड़ाई लड़ने में आसानी हो। हैरानी की बात है कि वर्तमान सीआईसी ने अपने प्रोसीजर के कई निर्णय पलट कर सरकार के हित में किए हैं। एक वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि पिछले वर्ष भी संस्था ने पांवटा साहिब में मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों को अपने वार्षिक अधिवेशन में बुलाया था जिसे लोगों की समस्याओं का समाधान हो सके। लेकिन ना तो मुख्य सूचना आयुक्त आएं

और ना ही उनका कोई प्रतिनिधि आया। यही नहीं आरटीआई कार्यकर्ताओं को उनकी अपील की सुनवाई के लिए शिमला बुलाया जाता है, जिसके लिए आरटीआई कार्यकर्ताओं को जनित समस्याओं के लिए भी अपने खर्चे पर शिमला जाना पड़ता है। जबकि लोगों की समस्याओं की सुनवाई अपने अपने जिले में की जानी चाहिए जो कि जनहित की लड़ाई लड़ने वाले कब तक अपने खर्चे पर शिमला जाते रहेंगे और परेशान होते रहेंगे। क्योंकि मुख्य सूचना आयुक्त वह अन्य आयुक्तों को तो जहां मोटी मोटी तनख्वाह मिलती है। टीए डीए भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। देखने में यह भी आया है कि कमीशन

ने जितने भी निर्णय दिए हैं वह सभी जन सूचना अधिकारियों के पक्ष में ही दिए हैं। इसके विपरीत आरटीआई कार्यकर्ताओं को केबल हतोत्साहित किया है। उन्होंने कहा कि यह कानून जनता के अधिकारों के लिए बनाया गया था लेकिन रक्षक ही अब भक्षक बन गए हैं। आयोग का गठन भी सिर्फ इसलिए किया गया था कि लोगों को जो सूचना उपलब्ध ना हो तो वह कमीशन के माध्यम से सूचना आम व्यक्ति को मिल सके। एक केस में तो वसीयत कर्ता के डेथ सर्टिफिकेट के बिना ही भूमि वसीयत के नॉमिनी के नाम करने के आदेश आदेश तक पारित कर दिए। इस बैठक में प्रधान राजेंद्र मोहन रमौल, एमएस कैंथ, सी एस चौधरी, एनडी सरीन, हरशरण शर्मा, एम एल गुप्ता और इंद्रजीत सिंह आदि मौजूद रहे।