Sirmour: बधाई- बहुमुखी प्रतिभा के धनी पहाड़ी कवि प्रताप पराशर को मिला सम्मान- ddnewsportal.com

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Sirmour: बधाई- बहुमुखी प्रतिभा के धनी पहाड़ी कवि प्रताप पराशर को मिला सम्मान 

अमेजन और यू ट्यूब में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुके गिरिपार के बेटे को सिरमौर कला संगम ने किया सम्मानित 

आज जब गाँव से शहर की और निकला व्यक्ति जहां अपनी बोली से परहेज करता दिखाई देता है, ऐसे में जिले मे एक अधिकारी ऐसे भी हैं जो पहाड़ी बोली को अपनी शान समझकर इतना अधिक प्रमोट कर रहे है कि आज वह पहाड़ी कवि से विख्यात हो चुके हैं। हम बात कर रहे हैं गिरीपार क्षेत्र के दूरदराज गांव बाड़ी से सम्बंध रखने वाले वित्त विभाग के अधिकारी (ACF) प्रताप पराशर की।
प्रताप पराशर किसी परिचय के मोहताज नही है। आजकल जिलाधीश सिरमौर के कार्यालय में सहायक नियन्त्रक (वित्त एवं लेखा) पद पर अपनी सेवाएं दे रहे है। गत दिवस ही सिरमौर कला संगम ने इन्हे इनकी अभूतपूर्व उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया है। 


लेखन में प्रताप पराशर की गहरी रूचि है और अक्सर कुछ न कुछ लिखना इनकी आदत बन गई है। वर्ष 2021 में इनके द्वारा रचित औऱ महामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश द्वारा विमोचित पुस्तक "वह ढूंढ़ती रोटी" अमेज़न पर अपनी छाप छोड़ चुकी है तथा आजकल इनका लेखन क्षेत्रीय बोली सिरमौरी पहाड़ी में चल रहा है। 
पहाड़ी कविताओं के लिए इन्हें "हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम" द्वारा महा अलंकरण समारोह में 28 जून को पहाड़ी कविता के लिए सम्मानित किया गया। पराशर की गिरिपार (हाटी) सिरमौरी पहाड़ी बोली में रचित पहाड़ी कविताओं की शैली के वाचन का हर कोई कायल है। इनके यूटयूब चेनल "Pahari Suno ; पर 100 से ज्यादा कविताऐं प्रसारित हो चुकी है जिसका रसपान लाखों लोग कर रहे है  हिमाचल ही नही अपितु उत्तराखंड में भी पराशर की कविताओं के दीवाने हैं। आजकल सोशल मिडिया में इन्हे खूब प्रेम मिल रहा है। 
ग्रमीण क्षेत्र की मासूमियत व जीवन संघर्ष का चित्रण इनकी कविताओं का मूल हैं। खेउड़ो ठुकु ऐशो पौढ़ाए (राख में फेंक दूं ऐसी पढ़ाई), कविता, शिक्षा क्षेत्र में नैतिक मूल्य के पतन पर कटाक्ष करती है। मेरिया बेटा तू चिट्टा ना चाखे (मेरे बेटे चिट्टा मत चखना) में नशे से दूर रहने अपील है, रूषे ना माता खोड़कु दादा (मेरे भाई मत रुठना) में भातृ प्रेम का सन्देश हैं, ठोगोडी जाए मेरिये धीये (मेरी बिटिया तुम समझदार बनो), मेरी शो बांठिया कुंवे ना होथि (मेरी माँ सा सुंदर कोई नही) कविता माँ के समर्पण, संघर्ष औऱ औलाद के प्रति अकूट प्रेम की मार्मिकता का बखान करती है।
कवि का कहना है कि मां के मुख से निकली भाषा ही मन के भाव संपादित कर सकती है, इसलिए पहाड़ी में लिखना अच्छा लगता है। एम फिल भौतिकी में पढ़ाई व वित्त विभाग के अधिकारी के पद पर आसीन होने बाद भी अपनी मातृ बोली से इतना लगाव इसलिए भी है कि पहाड़ी बोली अपने विलुप्त होने की कगार पर है और जो पढ़ाई करके उच्च पदों पर बैठे है वो अपनी बोली में बात करने में शर्म समझते है। उनका मानना है कि मां का कर्ज माँ की भाषा का सम्मान करके ही उतारा जा सकता है। सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित करने के लिए प्रताप पराशर (पहाड़ी कवि) ने संगम का आभार व्यक्त किया है।