सियासत: हाटी समुदाय के सहारे गिरिपार में अपनी नैया पार लगाने की आस में भाजपा-कांग्रेस... ddnewsportal.com

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सियासत: हाटी समुदाय के सहारे गिरिपार में अपनी नैया पार लगाने की आस में भाजपा-कांग्रेस...

लोकसभा चुनाव नजदीक है और फिर एक बार हाटी मुद्दे पर राजनीति चरम पर पंहुच चुकी है। शिलाई विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक राजनीति इस मामले में देखने को मिल रही है। दोनो प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के नेता हाटी समुदाय के सहारे एक बार फिर अपनी नैया पार लगाने की आस लगा बैठे हैं। नतीजतन हाटियों को ही दो राजनैतिक धड़े में बांट दिया गया है। इसका उदाहरण दो दिन में हुई हाटी समुदाय की दो महाखुमली से देखने को मिल गया है। पहले दिन शुक्रवार 15 दिसंबर को हाटी कल्याण मंच की महाखुमली हुई, जिसमे उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान विशेष रूप से शामिल हुए। इसमे कांग्रेस समर्थित लोग अधिकांश थे। वहीं शनिवार 16 दिसम्बर को हाटी समिति के बैनर तले महाखुमली आयोजित हुई, जिसमे पूर्व विधायक बलदेव तोमर ने विशेष तौर पर शिरकत की। इस महाखुमली में हाटी समिति के अलावा भाजपा के अधिकांश लोग शामिल रहे। अब इन सबमे बड़ी बात यह है कि क्या यह शक्ति प्रदर्शन हाटी समुदाय के हक को दिलाने के लिए है या अपना-अपना राजनैतिक वर्चस्व बढ़ाने के लिए, आम जन तो इसमे ही कन्फ्यूज हो गया है। दोनो महाखुमली में एक दूसरे पर खूब आरोप लगाए गये। उद्योग मंत्री ने तो ये तक कह दिया कि हाटी केंद्रीय समिति भाजपा की एजेंट बनकर काम कर रही है। और केंद्र सरकार, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा भेजे पत्र में मांगे गये स्पष्टीकरण को भेजने में देरी कर रही है। वहीं, शनिवार को हुई हाटी महाखुमली में पूर्व भाजपा विधायक बलदेव तोमर ने कहा कि प्रदेश की सरकार जानबूझकर हाटी एसटी मामले को लागू नही कर रही और इसमे उद्योग मंत्री का सबसे बड़ा रोल है। वह चाहते ही नही कि आसानी से ये लागू हो जाए। हर्षवर्धन चौहान हमेशा हाटी विरोधी रहे हैं। अब इन बयानबाजी और राजनिति के बीच हाटी समुदाय की जनता विशेषकर युवा वर्ग पिस रहा है जिनके भविष्य पर तलवार लटक रही है। उन्हे हाटी एसटी सर्टिफिकेट नही मिल रहे, जिससे शिक्षा में छात्रवृति और नौकरियों में एसटी कोटे से आवेदन करने से युवा वंचित हो रहे है। 

इन सबके बीच तटस्थ लोंगों की मानें तो हाटी के मामले में राजनिति तो दोनो दलों ने की है। ये अलग बात है कि इस मामले में प्रदेश से केंद्र तक किसने प्रयास किए और किसने सिरे लगाया, ये बात भली-भांति सभी लोग जानते ही है। कुछ बुध्दिजीवियों का यह भी कहना है कि हाटी एसटी मामले पर श्रेय लेने की होड़ की बजाय इस मामले में दोनो दलों और हाटी समितियों को एक मंच पर आकर क्षेत्र और युवाओं के भविष्य की भलाई के लिए मुद्दे को सिरे चढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। हालांकि जनता आज समझदार हो चुकी है और किसी के बहकावे में आने वाली नही। हर कोई अपना अच्छा बुरा भली-भांति समझता है। लोग अभी चुप है लेकिन यह तय है कि किसी एक दल को तो इसका खामियाजा आगामी लोकसभा चुनाव में जरूर भुगतना पड़ेगा। 

कहां अटकी है बात- 

दरअसल, बीते चार अगस्त 2023 को देश की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लोकसभा और राज्यसभा से पारित हाटी अनुसूचित जाति संशोधित बिल पर अपनी मुहर लगा हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया। मामला हिमाचल प्रदेश सरकार के पास आया। प्रदेश सरकार के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के विभिन्न मंच से जो बयान आये है उसके मुताबिक इस मामले में केंद्र से दो अलग-अलग पत्र में अलग-अलग बातें लिखी है, जिसके स्पष्टीकरण के लिए केंद्र को पत्र भेजा गया है। उसका जवाब नही आया है। जैसे ही जवाब आएगा, आगामी प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी। 
वहीं, हाटी समिति और भाजपा पूर्व विधायक शिलाई बलदेव तोमर का कहना है कि कांग्रेस सरकार बेवजह हाटी एसटी मामला में रोड़ा अटकाने का काम कर रही है। इसमे स्पष्टीकरण जैसी कोई बात ही नही है। सरकार जानबूझकर गिरिपार के युवाओं के भविष्य के साथ यह खिलवाड़ कर रही है, जिसमे क्षेत्र से उद्योग मंत्री का सबसे बड़ा रोल है। 

सोशल साइट्स पर प्रतिक्रिया- 

क्षेत्र के युवा नरेश पराशर बताते हैं कि "अब स्थिति यह है कि शिलाई कांग्रेस चाहती है कि जल्दी से केंद्र का जबाव आए और वे एसटी सर्टिफिकेट जारी करवाकर लोकसभा चुनाव से पहले इस

मुद्दे को खत्म करवाए। पर भाजपाई चाहते है‌ कि या तो प्रदेश सरकार बिना केंद्र के जबाव के सर्टिफिकेट इशू करे, जिससे हर्षवर्धन चौहान को गलत ठहराया जा सके। या‌ लोकसभा इलेक्शन से ठीक पहले जबाव आए ताकि मामला तब तक गर्म रहे।
नोट- यहां शिलाई में युवाओं की किसी को नहीं पड़ी है। असली मुद्दा लोकसभा चुनाव है, जिसकी‌ धीमी आंच पर यह खिचड़ी पकती रहेगी और बुरा असर यहां के सामाजिक ढांचे पर पड़ेगा।"

शिक्षाविद श्याम सिंह तोमर लिखते हैं कि
"Hatti एक भावनात्मक मुद्दा है। राजनीति करने के लिए सैंकड़ों विषय और हज़ारों बहाने मिलेंगे। समाज परम्पराओं और

रितिरिवाज से चलता है। इसलिए इसे विखंडित मत करो। अगर समाज बिखर गया तो राजनीत किसी काम की नहीं रहेगी। भावनात्मक मुद्दा सौहार्दपूर्ण वातावरण में ही हल हो सकता है। इसलिए इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए सामाजिक तानेबाने का ध्यान रखना जरूरी है।"

शिक्षक मस्तराम शर्मा लिखते हैं कि "खुमली का मतलब होता है कि सभी पक्षों का एक-साथ बैठकर समस्या का समाधान सर्वसम्मति से करना। जिस बैठक में सिर्फ एक ही पक्ष और एक ही विचारधारा के लोग शामिल होते हैं तथा उसमें एक ही व्यक्ति

की जय जयकार होती है तथा दूसरा पक्ष अनुपस्थित हो  और उस अनुपस्थित पक्ष की जमकर आलोचना होती हो उसको राजनीतिक रैली अथवा जनसभा कहते हैं न कि खुमली या महाखुमली। हाटी क्षेत्र में  दोनों गुटों की जनसभाएं अथवा रैलियां हो रही है न कि खुमली। खुमली में हमेशा दोनों पक्षों का एक-साथ होना आवश्यक है। इसलिए कृपया इन रैलियों के लिए खुमली अथवा महाखुमली शब्द का अपमान न करें।"