मक्की पैदा करने वाले किसानों के लिए बनें दीर्घकालीन पॉलिसी ddnewsportal.com
मक्की पैदा करने वाले किसानों के लिए बनें दीर्घकालीन पॉलिसी
भारतीय किसान युनियन हिमाचल प्रदेश ने केंद्रीय कृषि मंत्री को पत्र भेजकर उठाई मांग,
मक्की व आटे की अलग से जीआई Tagging करके एक अलग ब्रांड बनाने की दिशा में कार्य करने को भी की आवाज बुलंद।
भारतीय किसान यूनियन हिमाचल प्रदेश का कहना है कि मक्की की फसल हिमाचल प्रदेश सहित जिला सिरमौर के किसानों की आर्थिकी का मुख्य स्रोत है। भारतीय किसान यूनियन हिमाचल प्रदेश द्वारा इसको लेकर कई महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाए गए हैं ताकि मक्की की सरकारी खरीद तथा मक्की पैदा करने वाले किसानों हेतु आने वाले समय में दीर्घकालीन पॉलिसी बन सके। इस दिशा में हमने कुछ गंभीर प्रयास किए हैं। इस बार हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार के साथ धान की खरीद को लेकर एमओयु स्पार्क शेयर कर लिया गया है। परंतु अभी तक मक्की की सरकारी खरीद को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। जबकि मक्की की फसल आने में थोड़ा समय ही शेष है तथा यह धान से पहले आती है। इसी कड़ी में युनियन ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भी एक पत्र ईमेल के माध्यम से भेजा गया है जो आपकी सेवा में प्रस्तुत है। अनिंद्र सिंह नॉटी सहित चरणजीत सिंह जैलदार, गुरजीत सिंह नंबरदार, हरिराम शास्त्री, सुभाष शर्मा एडवोकेट, मास्टर प्रीतम सिंह, जसविंदर सिंह बिलिंग, हरीश चौधरी, गुरनाम सिंह बंगा, इंदर सिंह राणा, रविंद्र तोमर, इंद्रजीत सिंह अज्जू जोगिंदर चौधरी, मान सिंह चौधरी, कमल चौधरी, बूटा सिंह, जुल्फिकार अली, जितेंद्र राजा, अर्जुन सिंह, बनवेत, गुरनाम सिंह गामा और सतवीर सिंह आदि नए कहा कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को लिखे पत्र में कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश में क्षेत्रफल के आधार पर मक्की की खेती दूसरी सबसे अधिक की जाने वाली फसल है (गेहूं के बाद तथा लगभग बराबर) और हिमाचल प्रदेश में उत्पादन के आधार पर मक्की का उत्पादन क्षेत्रफल के आधार पर भारत में सबसे अधिक है। हिमाचल प्रदेश में पैदा की जाने वाली मक्की की गुणवत्ता व पौष्टिकता शायद देश में सबसे अधिक है, जिसका कारण है यहां की जलवायु, देसी खादों का प्रयोग तथा लगभग ना के बराबर रसायनिक दवाइयों का प्रयोग। इस कारण हिमाचली मक्की की स्वाद, गुणवत्ता, प्रोटीन तथा शर्करा का स्तर भारत में सबसे अच्छा माना जाता है। हिमाचल प्रदेश में आज भी मक्की में कई स्थानीय परंपरागत बीजों की वैरायटी किसानों द्वारा संरक्षित है और इनको उगाया भी जा जाता है जिनके अपने अपने ही अलग-अलग रंग व स्वाद होते हैं। हिमाचल प्रदेश की मक्की के जीआई टैग हेतु हमारे कृषि विश्वविद्यालय ने कई आवेदन किए हैं। हिमाचल प्रदेश की मक्की को मध्य प्रदेश के गेहूं की तर्ज पर बहुत अधिक पसंद किया जाता है। आमतौर पर मक्की पैदा करने वाले किसान सीमांत किसान ही होते हैं जो गरीबी की रेखा से नीचे रहते हैं क्योंकि वह फलदार पेड़ जैसे सेब आम आदि लगाकर कई वर्ष तक आमदनी का इंतजार नहीं कर सकते। इन सभी केंद्र बिंदुओं पर अगर नजर डाली जाए तो हैरानी होती है कि
आज तक मक्की की फसल की हिमाचल प्रदेश में सरकारी खरीद नहीं हो रही है तथा एमएसपी से उलट हिमाचल प्रदेश के किसानों को अपनी मक्की की फसल 700 से 900 रूपये प्रति क्विंटल बेचनी पड़ती है जबकि इसकी गुणवत्ता भारतवर्ष में सबसे बेहतर है। वर्ष 2020 में भी मक्की पैदा करने वाले किसानों को हिमाचल में बहुत नुकसान का सामना करना पड़ा क्योंकि बिहार जैसे राज्यों से कि उत्तर भारत में लाकर मक्की बहुत सस्ते में बेची जाती है जबकि हिमाचली मक्की की गुणवत्ता बिहार की मक्की से बहुत अधिक श्रेष्ठ है। हालांकि इस बारे में दीर्घकालीन नीति निर्माण की आवश्यकता है परंतु वर्ष 2021 की मक्की की फसल पकने को तैयार है तो सर्वप्रथम आप हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ धान के साथ साथ मक्की की खरीद का भी एमओयू साइन करके इस वर्ष किसानों को तत्कालिक लाभ देने की कृपा करें तथा सीजन की समाप्ति के बाद हिमाचल प्रदेश की मक्की व आटे की अलग से Gi Tagging करके इसको एक अलग ब्रांड बनाने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।