इंओ सालो एबे धूम धड़ाके से मनाणे बिशु ddnewsportal.com

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फाइल फोटो।

इंओ सालो एबे धूम धड़ाके से मनाणे बिशु

गिरिपार के युवा प्रधान मोहन ठाकुर की क्षेत्र के लोगों से परंपरा और संस्कृति को बरकरार रखने की अपील, कोरोना के दो साल के विराम के बाद फिर से शुरू हों मेले। 

गिरिपार क्षेत्र की कमरऊ पंचायत के युवा व शिक्षित पंचायत प्रधान मोहन ठाकुर ने क्षेत्र के लोगों से इस बार बिशु मेलों का पहले की तरह धूमधाम से आयोजन करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि दो साल तक कोरोना के कारण क्षेत्र में सदियों से आयोजित होने वाले बिशु मेलों पर विराम लगा था

लेकिन अभी सब ठीक है इसलिए हमें फिर से पहले की तरह हमारी संस्कृति के प्रतीक बिशु मेलों का हर्षोल्लास के साथ आयोजन करना है। मोहन ठाकुर ने कहा कि अपने कल्चर और संस्कृति को बचाने में आप सभी अपना पूरा सहयोग दें। यह हम सबका सर्वप्रथम कर्तव्य भी है। उन्होंने क्षेत्र के ग्रामीणों से आग्रह किया कि सभी ग्राम वासी अपने अपने गाँव के विशाल भंडार में बिशु

मेले के उपलक्ष्य पर एक खुमली जरूर करें और "हमारे पहाड़ी क्षेत्र मे जैशे हमारो तिलोरधार का बिशु मेला नानड़ो बिशु, बोड़ों बिशु, कफोटा को बिशु, जाखने को बिशु, कांडों को बिशु और सतौन को बिशु मेला और शिलाई, सुईनल और सब के सब बिशु मेले शोंक से हों पाछु जैशे हों थिए। इंओ सालो बी धूम धडाके से करणे।"
उन्होंने कहा कि क्योंकि Covid के चलते हमारे बिशु मेले पूरी तरह खत्म होने की कगार पर आ चुके है लेकिन हम सभी ग्रामीण ऐसा नही होने देंगे  एक

बार फिर से पूरे हर्ष व उल्लास के साथ मनाएंगे। क्योंकि यही हमारी संस्कृति है और हमारी पहचान है। 
गोर हो कि बिशु मेला देवताओं के सम्मान में आयोजति होता है। देव परंपरा से जुड़े होने के कारण देवभूमि के दूर दराज इलाकों में इनका आयोजन करवाना जरूरी माना जाता है। बिशु मेले में तीर कमान से होने वाला महाभारत का सांकेतिक युद्ध अथवा ठोडा नृत्य मुख्य आकर्षण रहता है। इस खेल में दो दल होते हैं। दोनों दल विशेष परिधान पहन कर क्षत्रिय वीरगाथा गाते व ललकारते हुए एक दूसरे पर तीरों से प्रहार करते हैं। यह प्रहार टांगों पर घुटने के नीचे किये जाते हैं, जो दल सबसे अधिक सफल प्रहार करता है उसे विजेता घोषित किया जाता है ।
हालांकि बीते कुछ सालों में इन मेलों के आयोजन में काफी बदलाव आया है तथा सांस्कृतिक संध्याएं व खेलकूद प्रतियोगिताएं बिशु का मुख्य आकर्षण

बन चुकी है। मेला बाजार में खरीददारी, मिठाई व फास्ट फूड तथा झूला झूलना भी बदलते परिवेश मेले का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन हमें बदलाव के साथ साथ अपनी प्राचीन संस्कृति को नही भूलना है। गोर हो कि गिरिपार क्षेत्र में बैसाख संक्रांति से अलग अलग स्थानों पर बिशु मेलों का आयोजन शुरू होता है जो लगभग पूरे माह चलता है।