HP News: पहाड़ों से उठी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: चिट्टा के खिलाफ हिंदुस्तान की लड़ाई में हिमाचल प्रदेश अग्रणी ddnewsportal.com
HP News: पहाड़ों से उठी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: चिट्टा के खिलाफ हिंदुस्तान की लड़ाई में हिमाचल प्रदेश अग्रणी
राजनीतिक इच्छाशक्ति, सशक्त पुलिसिंग और जनता की भागीदारी से नशे के खिलाफ एकजुट अभियान
जब पूरा देश चिट्टा (हेरोइन) और अन्य नशीले पदार्थों के बढ़ते खतरे से जूझ रहा है, ऐसे समय में हिमाचल प्रदेश एक मजबूत, स्पष्ट और प्रेरणादायक मॉडल के रूप में उभरा है। पहाड़ों से उठी यह आवाज अब राष्ट्रीय संकल्प बन चुकी है—नशे को ना, जीवन को हाँ। हिमाचल ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति, पेशेवर पुलिसिंग और जनता का भरोसा एक साथ खड़े होते हैं, तो सबसे जटिल सामाजिक चुनौती को भी मात दी जा सकती है।
■ जन-आंदोलन में बदली नशे के खिलाफ लड़ाई:
हिमाचल की विशेषता यह है कि यह लड़ाई केवल पुलिस की कार्रवाई तक सीमित नहीं है। यह एक जन-आंदोलन बन चुकी है, जिसमें सरकार, पुलिस और आम नागरिक कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। गांवों से शहरों तक, स्कूलों से सड़कों तक—हर स्तर पर संदेश एक ही है: “हिमाचल न नशे का रास्ता बनेगा, न ठिकाना, न बाजार।”

■ जीरो टॉलरेंस: नेतृत्व से नीति तक:
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के सशक्त नेतृत्व और पुलिस महानिदेशक अशोक तिवारी, आईपीएस के रणनीतिक मार्गदर्शन में राज्य ने चिट्टा तस्करी के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई है। यह नीति NDPS अधिनियम, 1985 और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) की राष्ट्रीय रणनीति के अनुरूप है, जिसमें कानून प्रवर्तन, खुफिया तंत्र, वित्तीय कार्रवाई और जन-जागरूकता को समान महत्व दिया गया है।
■ चिट्टा: अपराध नहीं, राष्ट्रीय संकट:
चिट्टा केवल एक नशा नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य पर सीधा हमला है। यह स्वास्थ्य को बर्बाद करता है, संगठित अपराध को बढ़ावा देता है और सामाजिक अस्थिरता पैदा करता है। इसकी तस्करी अंतर-राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ी होने के कारण यह समस्या कानून-व्यवस्था से आगे बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बन जाती है।
■ NDPS कानून की सख्ती:
NDPS अधिनियम के तहत 250 ग्राम या उससे अधिक हेरोइन रखने पर कम से कम 10 वर्ष की कठोर कैद, भारी जुर्माना, जमानत नहीं और अवैध संपत्ति की जब्ती का प्रावधान है। कानून का उद्देश्य स्पष्ट है—तस्करों और फाइनेंसरों पर कठोर प्रहार, जबकि नशे के शिकार लोगों के लिए इलाज और पुनर्वास।
■ ट्रांजिट राज्य से सतर्क राज्य तक:
भौगोलिक रूप से हिमाचल एक ट्रांजिट क्षेत्र बन सकता था, लेकिन राज्य सरकार ने रोकथाम और सतर्कता को प्राथमिकता देकर इस चुनौती को अवसर में बदला। आज हिमाचल नशे के खिलाफ अर्ली अलर्ट स्टेट के रूप में पहचाना जा रहा है।

■ पेशेवर पुलिसिंग की नई परिभाषा:
डीजीपी अशोक तिवारी के नेतृत्व में हिमाचल पुलिस ने केवल गिरफ्तारियों पर नहीं, बल्कि पूरे नशा नेटवर्क को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया है—आर्थिक कमर तोड़ना, निवारक कार्रवाई, राज्यों के बीच खुफिया समन्वय और सुनिश्चित सजा।
मुखबिर इनाम योजना (₹10,000 से ₹5 लाख तक), 112 हेल्पलाइन और पूर्ण गोपनीयता ने आम नागरिक को इस लड़ाई का सक्रिय प्रहरी बना दिया है।
■ वॉकथॉन से संकल्प:
शिमला, धर्मशाला, हमीरपुर में आयोजित एंटी-चिट्टा वॉकथॉन ने यह साबित किया कि जब जागरूकता सड़कों पर उतरती है, तो बदलाव तय होता है। हिमाचल प्रदेश ने दिखा दिया है कि नशे के खिलाफ जीत संभव है।
