आम आदमी की जिम्मैदार समझ से रुकेगा पर्यावरण प्रदूषण- दिनेश कुमार पुंडीर- ddnewsportal.com

आम आदमी की जिम्मैदार समझ से रुकेगा पर्यावरण प्रदूषण- दिनेश कुमार पुंडीर- ddnewsportal.com

विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) विशेष

आम आदमी की जिम्मैदार समझ से रुकेगा पर्यावरण प्रदूषण

हम-आप नैतिक कर्तव्य निभाकर बना सकते हैं देश-प्रदेश के एन्वायरमेंट को स्वच्छ।

देश-प्रदेश मे प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश मे भी पूरे सप्ताह बड़े जोरों शोरों से स्कूलों, विभिन्न विभागों व स्वयसेवी संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर पर्यावरण बचाने का बड़ा शोर उठता है। हालांकि कोरोना के चलते पिछले दो वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रम नही हो पाए। वरना हर वर्ष स्कूली बच्चें इस अवसर पर जहां रैलियां व भाषण आदि से पर्यावरण बचाने का संदेश देकर समाज को जागरुक करने का अपना दायित्व बखूबी निभातें हैं वंही सम्बन्धित विभाग व अन्य विभागों द्वारा सफाई इत्यादि कार्यक्रम चलाकर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक किया जाता है। करीब एक-डेढ सप्ताह लोगों के जेहन मे यह गूंज रहती है। परन्तु किसी ने यह सोंचा है कि उसके बाद हम, आप तथा विभाग पर्यावरण संरक्षण के लिये कितने प्रयास करते है। एक सप्ताह के बाद पूरे साल फिर वही आलम रहता है। जगह-जगह कूड़े के ढेर पड़े रहते है, फैक्ट्रियों का जहरीला धुंआ पर्यावरण मे बैखोफ जहर घोलता है, जंगल काटे जाते है, पहाड़ों का सीना छलनी होता है, नदी नालों मे अवैद्य खनन होता है, क्रशरों की धूल फसलों को चौपट करती है। तात्पर्य एक है कि जब तक हम सभी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिये नैतिक व व्यक्तिगत जिम्मैवारी नही लेंगे, तब तक सूरत-ए-हाल जस के तस रहेंगे। प्रदेश मे बिगड़ते पर्यावरण संतुलन की बात करें तो आज प्रदेश का एसा कौन सा शहर है जंहा गलियों तथा सड़क किनारे कूड़े-कचरे के ढेर न पड़े हो। कुछ दूरी पर कूड़ेदान हो तो भी 90 फीसदी लोग कूड़ेदान तक पंहुचने की बजाय सड़क तथा गलियों मे कूड़ा फेंक देते है। इसके विपरीत विश्व के विकसित देशों मे आम आदमी अपनी नैतिक जिम्मैवारी बखूबी समझते व निभाते है तभी तो वहां सड़क पर भी कागज का एक टुकड़ा तक नही दिखता। हालांकि केन्द्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए कईं कार्यक्रम चलाए जा रहे है। लेकिन अभी भी आम आदमी के जिम्मैवार होने मे समय लगता प्रतीत हो रहा है। प्रदेश को विकास के मामले मे कईं अवार्ड़ मिले है जो प्रशंसनीय है। प्रदेश मे पोलिथीन पर पूर्ण प्रतिबंध का निर्णय तारीफ के काबिल है। परन्तु आज भी विभागीय अधिकारी औसतन 10 दुकानों पर छापेमारी करें तो 5 से 6 दुकानों पर पाॅलिथीन जरुर मिलेंगे। उद्योगों से राज्य प्रगति की और अग्रसर है परन्तु यदि दूसरा पहलू देखें

तो इसका प्रतिकूल प्रभाव औद्योगिक क्षेत्रों मे बढ़ता तापमान पर्यावरण असंतुलन को दर्शाता है। बरसात मे वन विभाग द्वारा वन महोत्सव मनाकर हजारों-लाखों पौधे प्रदेश मे लगाये जाते है। परन्तु उनमे से पेड़ कितने बनते है सभी के समक्ष है और उसके उपर अवैद्य कटान। इसी प्रकार पहाड़ों, नदी नालों का सीना छलनी तथा वाहनों के प्रदूषण से भी स्वच्छ हिमाचल दागदार होना शुरु हो गया है। हालांकि सरकार द्वारा पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिये प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किये जाते है तथा अवैद्य गतिविधियों पर भी कुछ कार्रवाई की जा रही है। परन्तु इन प्रयासों को तब तक मूर्त रुप नही मिल सकता जब तक आम आदमी पर्यावरण को बचाने की व्यक्तिगत जिम्मैवारी नही लेता। हम आप ही पर्यावरण दूषित करते है इसलिये हमारी भी नैतिक जिम्मैवारी बनती है कि हम इसे दूषित होने से बचायें। अन्यथा जहां सरकार के कार्यक्रम तथा योजनाएं बैमानी है, वहीं पर्यावरण संरक्षण के दावे हमैशा की तरह हवा हवाई ही रहेंगे।

                                                                    दिनेश कुमार पुंडीर