परशुराम भगवान जैसे पराक्रमी पुत्र की चाहना ने दिया ग्यास पर्व को जन्म ddnewsportal.com

परशुराम भगवान जैसे पराक्रमी पुत्र की चाहना ने दिया ग्यास पर्व को जन्म ddnewsportal.com

ग्यास पर्व विशेष: परशुराम भगवान जैसे पराक्रमी पुत्र की चाहना ने दिया ग्यास पर्व को जन्म

गिरिपार के परशुराम भगवान मंदिरों मे पुत्र प्राप्ति की मनोकामना के लिये करते है भगवान का जागरण, होती है चारों पहर की पूजा

जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र मे मनाए जाने वाले ग्यास पर्व का इतिहास विष्णु भगवान के छठे अमर अवतार भगवान परशुराम से जुड़ा हुआ है। कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की तृतीया को मां-बेटे के मिलन के दिन गिरिपार क्षेत्र के परशुराम भगवान के मंदिरों मे रात्रि जागरण यानि ग्यास पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। क्षेत्र मे सदियों से मनाए जाने वाले
इस पर्व की अपनी ही महत्ता है। मंदिर के प्रांगण मे हवन कुंड मे अग्नि प्रज्जवलित करके सभी ग्रामीण मंदिर परिसर मे एकत्रित होकर भगवान का भजन करते है। इस दौरान चारों पहर की विशेष पूजा की जाती है और देव खेल भी होते है। क्षेत्र के 80 से ज्यादा बसंत देख चुके बुर्जुग बताते है कि उन्हे भी यह मालूम नही कि ग्यास का यह पर्व कितनी सदियों से मनाया जाता है परन्तु क्षेत्र मे सुख शांति व मनोकामनाओं की पूर्ति होने के कारण आस्था का यह पर्व आज भी बदस्तूर जारी है। क्षेत्र के बुर्जुगों से एकत्र
जानकारी के मुताबिक पहले जोड़ियों मे बेटों की मनोकामना की जाती थी और भगवान के नाम की रात जागकर यह मनोकामना पूरी होती थी। ऐसे कंई साक्ष्य क्षेत्र मे आज भी मौजूद है। ऐसे मे आज भी भगवान परशुराम को वंश चलाने वाले भगवान के रुप मे देखा जाता है। बताया जाता है कि जिनके पुत्र नही होता वह पुत्र की कामना करके भगवान के नाम की रात जागते है और उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैै। मान्यताओं के मुताबिक भगवान परशुराम जैसा बलशाली व पराक्रमी पुत्र की कामना या चाहना ने ही ग्यास पर्व को जन्म दिया है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन भगवान परशुराम अपनी माता मां रेणूका जी से मिलने श्री रेणूका जी जाते है इसलिये सभी ग्रामीण मंदिर मे एकत्रित होकर भगवान का जागरण व पूजा पाठ कर उनके स्थान को बुरी शक्तियोें से बचाने का प्रयास करते है। धूना यानि हवन कुण्ड इस दिशा मे ग्रामीणों का बड़ा सहयोग करता है। इस हवन कुण्ड को प्रज्जवलित करने के लिये सभी घरों से एक-एक लकड़ी आती है जिससे पूरी रात यह हवन कुण्ड अग्निमय रहता है। आज भी भगवान परशुराम से मनोकामना पर जिनके पुत्र प्राप्ति हो जाती है वह भक्त गांव के मंदिर के साथ साथ ही श्री रेणूका जी जाकर अपने बच्चों की चोटी कटवाने के बाद ही उनके केश कटवाते है। क्षेत्र मे जहां जहां भी भगवान परशुराम के मंदिर है वहां पर ग्यास की रात दूर दूर से मन मे पुत्र की कामना लिये भक्त आते है और कामना पूर्ण होने के बाद भगवान के नाम की बधाई देते है। क्षेत्र मे दुगाना, माशू, कुहण्ठ, मश्वा आदि अनैकों गांव जहां पर भगवान परशुराम के मंदिर है। वहां पर ग्यास पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता

है। कंई गांवों मे इस मौके पर भगवान के चरित्र पर आधारित नाटक मंचन होता है जो जागरण की रात को और ज्यादा भक्तिमय बना देता है। इस बार ग्यास का यह पर्व आज यानि 24 नवंबर मंगलवार को मनाया जा रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के चलते इस बार मंदिर मे ज्यादा भीड़ नही जुटेगी और कार्यक्रम भी नही होंगे। लेकिन सूक्ष्म रूप से परंपरा का निर्वहन होगा। बहरहाल रितिरिवाज, त्योहार व धार्मिक मान्यताओं के धनी गिरिपार क्षेत्र मे ग्यास पर्व का भी अपना एक अहम स्थान है।